
खासकर मुंबई के यहूदी केंद्र नरीमन हाऊस पर हुए हमले के दौरान आतंकवादियों के बीच हुई बातचीत के सबूत बीबीसी के हाथ लगे हैं। बीबीसी के पत्रकार रिचर्ड वॉटसन, जिन्होंने यह विशेष कार्यक्रम तैयार किया है, कहते हैं कि सबूतों से सब कुछ बिल्कुल साफ-साफ पता चलता है कि कैसे पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों के आका उन्हें पुलिस और सुरक्षा बलों की एकदम सटीक जानकारियां भेज रहे थे। उन्होंने उदाहरण के तौर पर निम्न नमूना पेश किया है-
(नरीमन हाऊस में मौजूद आतंकवादी पूछता है)
क्या हमारी बिल्डिंग में कोई है ?
(उनका आका जवाब देता है) पीछे की तरफ छत पर देखो.... वहां पुलिस है। मुख्य सडक पर बहुत पुलिस है और साथ में ही लगी एक निर्माणाधीन इमारत की छत पर भी पुलिस है। तुम्हें मर्चेट हाऊस पता हैक् वे लोग उसी की पिछली दीवार के पीछे बैठे हैं और वहीं से फायर कर रहे हैं। उनसे बात करो और खुदा की मदद से वे चले जाएंगे। वॉटसन का कहना है कि मुंबई पुलिस का यह दावा गलत है कि आतंकवादियों के आका टेलीविजन का माघ्यम से जानकारियां हासिल करा रहे थे। उनकी जानकारी बिलकुल सटीक थी। मुझे टेलीविजन का अनुभव है और इस दौरान जो फुटेज दिखाया जा रहा था, उससे इस तरह की सटीक जानकारी हासिल करना संभव नहीं है। कुछ लोग मौके से जानकारियां भेज रहे थे। वॉटसन का कहना है कि अगर यह सही है, तो इसका मतलब यह हुआ कि लश्कर के मुंबई से जुडे तार इस हमले में मुख्य किरदार निभा रहे थे और उनका पता लगाया जाना चाहिए। वॉटसन का कहना है कि हमले में लश्कर से जुडे स्थानीय मुसलमानों का जिक्र होने से राजनीतिक बवंडर खडा हो सकता है, इसमें कोई शक नहीं है। दूसरी वॉटसन की राय पर अतिरिक्त पुलिस आयुक्त मुंबई देवेन भारती ने कहा, ऎसे कोई संदिग्ध नहीं हैं। हमारी जांच निष्पक्ष है और पूर्ण है। यह सिर्फ उन दस आतंकवादियों का काम था, जिन्हें पाकिस्तान में प्रशिक्षण दिया गया और वहां से जानकारियां हासिल हो रही थीं।
वॉटसन का यह भी कहना है कि अमरीकी जांच एजेंसी एफबीआई और स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस ने हमले की जांच में मदद करते हुए जो फोरेंसिक सबूत इकट्ठा किए हैं, वे काफी मजबूत हैं।
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