भारतीय क्रिकेट का एक नायाब हीरा जिसे क्रिकेट जगत में "टाइगर पटौदी" के नाम से भी जाना जाता है, गुरूवार 22 सितम्बर को इस दुनिया को अलविदा कह गया। मंसूर अली खान पटौदी उर्फ टाइगर का जन्म पांच जनवरी 1941 को भोपाल में हुआ था। उनके पिता नवाब पटौदी सीनियर भी टेस्ट क्रिकेट के एक बेहतरीन खिलाडी थे। पटौदी की शादी बॉलीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगौर से हुई। इनके एक पुत्र और दो पुत्रियां हैं। सैफ अली खान जो कि बॉलिवुड के एक जाने-माने कलाकार हैं, पुत्री सोहा अली खान भी अभिनेत्री है और दूसरी पुत्री सबा अली खान ज्वैलरी डिजाइनिंग के क्षेत्र में है।
शर्मिला से हुआ प्यार पटौदी की शर्मिला टैगोर से पहली मुलाकात उनके कोलकाता स्थित घर पर हुई थी। पटोदी वहां अपने मित्र के साथ एक कार्यक्रम में गए थे। वहां पर शर्मिला को देखते ही एक ही नजर में वह अपना दिल शर्मिला टैगोर को दे बैठे। शर्मिला भी उनकी तरफ काफी आकर्षित हुई और दोनों के बीच मुलाकातें बढने लगी। दोनों एक दूसरे को प्यार करने लगे और जिंदगीभर साथ रहने का निर्णय लिया।एक मार्च 1967 में उनकी मंगनी हुई और 27 दिसंबर, 1969 को बाल्व डेर स्टेट कोलकाता में शादी हुई थी। इसमें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन और इंदिरा गांधी भी शादी में शामिल हुई थी। टाइगर पटौदी के करिश्मे को किस्सों और कहानियों में ही जाना या समझा जा सकता है।
नवाब पटौदी भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां की मंझली बेटी साजिदा सुल्तान पटौदी की मां थी। भोपाल नवाब ने साजिदा को अपना वारिस घोषित किया था, तो साजिदा ने अपनी विरासत बेटे मंसूर को सौंपी थी। लिहाजा पटौदी, भोपाल के भी नवाब कहलाए। पटौदी का लगाव सिर्फ क्रिकेट से नहीं रहा, वह हॉकी व फुटबाल भी खेलते थे। पटौदी की पूरी जिंदगी भोपाल से जुडी हुई रही है, जब भी फुर्सत मिलती थी वह भोपाल चले आते थे। खबरों से दूर रहकर वह भोपाल में अपनी हिस्सेदारी को निभाने से नहीं हिचकते थे। पटौदी को करीब से जानने वाले बताते हैं कि उन्होंने धर्म से लेकर जरूरतमंदों तक के हित में काम करने में कभी हिचक नहीं दिखाई। वह भोपाल में हज हाउस बनवाना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने राज्य हज कमेटी को जमीन तक देने की पेशकश की थी, मगर उनकी यह हसरत अधूरी ही रह गई। इतना ही नहीं उन्होंने औकाफ-ए-शाही के जरिए छात्रवृत्ति व विधवाओं को आर्थिक मदद देने का काम किया।
क्रिकेट को दी नई ऊंचाईयां:
मंसूर अली खान पटौदी ने क्रिकेट की अपनी विरासत न सिर्फ बरकरार रखी बल्कि भारतीय क्रिकेट को भी नई ऊंचाईयां दी। पटौदी साहब ने अपने क्रिकेट करियर में 46 टेस्ट मैच खेले जिसमें 34.91 की औसत से 2793 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने 6 शतक भी जमाए। उनका सर्वश्रेष्ठ स्कोर 203 रन था। 1961 में उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया था, तब वे महज 20 वर्ष के थे। उनका औसत भले ही ऑउटस्टेंडिंग न हो लेकिन इनमें से 40 टेस्ट मैच उन्होंने तब खेले थे जब 1961 में एक कार दुर्घटना में उनकी दायीं आंख की रोशनी चली गई थी। इससे पहले के छह टेस्ट मैच में उनका औसत 41.00 था। 21 वर्ष की उम्र में जब पटौदी ने भारतीय टीम की कमान संभाली थी, तब टीम वेस्ट इंडीज दौरे पर थी। भारतीय टीम के नियमित कप्तान नारी कांट्रेक्टर के चोटिल हो जाने के कारण 21 वर्षीय पटौदी को टीम इंडिया का कप्तान बनाया गया था। तब उनकी उम्र 21 साल 77 दिन थी। तब वे विश्व के सबसे छोटी उम्र के कप्तान थे। सन् 2004 तक यह रिकॉर्ड उनके नाम ही रहा। उसके बाद जिम्बाब्वे के तातेडा तायबू ने यह रिकॉर्ड अपने नाम किया। उस वक्त भारतीय टीम में जबरदस्त बिखराव था। पूरी टीम में क्षेत्रवाद, भाषावाद का बोलबाला था। टीम गुटों में बंटी हुई थी। पटौदी ने इस भारतीय टीम को एक यूनिट में तब्दील किया, उसमें जीत का नया भरोसा जगाया और स्पिन गेंदबाजी को उसकी ताकत बनाया। इसी का नतीजा था कि न्यूजीलैंड को हरा कर भारत ने पहली बार देश के बाहर कोई सीरीज अपने नाम की। टेस्ट क्रिकेट में सबसे कम उम्र में कप्तानी का रिकार्ड लंबे समय तक उनके नाम रहा। उनके कप्तान बनने के बाद भारतीय क्रिकेट की तस्वीर बदलने लगी। पटौदी की कप्तानी में भारत ने विदेश में पहली जीत दर्ज की थी। 1967 में पटौदी की कप्तानी में भारतीय टीम ने न्यूजीलैंड को उसी की धरती पर मात दी थी। पटौदी ने 40 टेस्ट मैचों में कप्तानी की जिसमें उन्हें 9 टेस्ट मैच में जीत मिली जो लंबे समय तक भारतीय रिकार्ड रहा। टाइगर पटौदी के खेलने के दिनों में आजकल की तरह टेलीविजन नहीं हुआ करता था और मैच का आंखों देखा हाल सिर्फ आकाशवाणी द्वारा प्रसारित किया जाता था। इस कमेंट्री के सहारे ही वह क्रिकेटप्रेमियों के दिलो दिमाग पर छा गए थे।
पटौदी को याद करते हुए पूर्व क्रिकेटर अशोक मल्होत्रा का कहना है कि पटौदी मेरे सुपरस्टार थे। 1973 में जब मैंने 16 साल की उम्र में रणजी खेलना शुरू किया और मुझे हैदराबाद के खिलाफ खेलने का मौका मिला, तब मैं पटौदी के साथ ही खेला था। उस वक्त पटौदी हैदराबाद की ओर से रणजी ट्राफी खेला करते थे। साथी खिलाडियों में टाइगर नाम से ख्यात मंसूर अली खां पटौदी जबर्दस्त कप्तान थे। जिस तरह से इंग्लैंड के कप्तान माइक ब्रियरली सिर्फ कप्तानी के दम पर इंग्लैंड टीम में बने रहे, वही क्षमता पटौदी में भी थी। एक तरफ जहां वे श्रेष्ठ बल्लेबाजों में शामिल होते थे, वहीं दूसरी ओर वे क्षेत्ररक्षण में भी अपनी काबलियित सिद्ध करते थे। क्षेत्ररक्षण में उनका प्रिय क्षेत्र कवर्स था, जहां वे चीते की तरह फुर्ती से गेंद पर झपटते हुए नजर आते थे। उनकी इसी फुर्ती और तेजी के कारण उनका नाम टाइगर पडा। अपने साथी खिलाडियों को वे अपना नाम टाइगर ही बताते थे। पटौदी ने भारतीय टीम को जिस तरह से सफलताएं दिलाई, वह दर्शाती हैं कि वह कितने उम्दा कप्तान थे।
एक आंख से भी दुश्मन पर भारी
1961 में एक कार दुर्घटना में अपनी दाई आंख की रोशनी खोने के बावजूद उनकी आक्रामकता कम नहीं हुई थी। वे गेंद पर उसी तेजी से बल्ले का वार करते थे, जैसा वे अपनी दोनों आंखों से देखते हुए खेला करते थे। विश्व के वे पहले और आखिरी ऎसे खिलाडी थे जो एक आंख से खेलते हुए अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध करते थे। जिन दिनों नवाब पटौदी ने भारतीय टीम की कप्तानी सम्भाली थी, तब क्रिकेट में बचाव के साधन नहीं थे। खुले सिर से बल्लेबाजी करनी होती थी। जितनी आक्रामकता उनकी घरेलू मैदानों पर नजर आती थी, उतनी ही आक्रामकता उनकी विदेशी मैदानों पर खेलते हुए नजर आती थी, उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पडता था कि वे ईडन गार्डन पर खेल रहे हैं या लाड्स पर। उनके लिए मैदान से ज्यादा खेल और खेल भावना का महžव था। उनके समय न तो हेलमेट होते थे नअन्य सुरक्षा उपकरण, इसके बावजूद एक आंख के इस्तेमाल से ही आक्रामक अंदाज में बल्लेबाजी करते थे। असल में वह काउंटर अटैक में विश्वास करते थे। टीम इंडिया आज जिस मुकाम पर है, उसकी नींव टाइगर पटौदी ने ही रखी। खिलाडियों का वह मैदान पर जिस तरह से इस्तेमाल करते थे, वह पटौदी की क्षमता को दर्शाता था। साठ के दशक में वेस्ट इंडीज के साथ कोलकाता टेस्ट के दौरान उन्होंने अपनी आक्रामकता और निर्णायक की भूमिका से आलोचकों को करार जवाब दिया था।उन्होंने टीम के अन्य सीनियर खिलाडियों की मर्जी के खिलाफ स्पिनर चंद्रशेखर को हमले पर लगाया और चंद्रशेखर ने उनके विश्वास पर खरा उतरते हुए न सिर्फ व्यक्तिगत श्रेष्ठ प्रदर्शन किया था, बल्कि भारत उनके द्वारा झटके गए छह विकेट की बदौलत इस टेस्ट को जीतने में कामयाब हुआ था। टाइगर पटौदी के पिता इफ्तिखार अली खां पटौदी इंग्लैंड के लिए खेले थे और टाइगर पटौदी भी चाहते तो इंग्लैंड के लिए खेल सकते थे। लेकिन उन्होंने इंग्लैंड के बजाय भारत से खेलने का फैसला किया। वह महान बल्लेबाज, कप्तान, क्षेत्ररक्षक होने के साथ उम्दा इंसान थे।
विकास प्रजापत
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