निर्देशक: सुजॉय घोष
संगीत: विशाल शेखर
कलाकार: अमिताभ बच्चन, संजय दत्त, रितेश देशमुख, जैक्लीन फर्नांडिस
समीक्षा: निर्देशक सुजॉय घोष की "अलादीन" फिल्म कम कॉमिक्स ज्यादा है, लिहाजा इसे कॉमिक्स समझकर देखना ज्यादा बेहतर है। कहानी उसी अलादीन, उसके जिन और उसकी तीन इच्छाओं की है, जिसे भारतीय लोग बचपन में सैकडों बार सुन चुके है, लेकिन रूपहले पर्दे पर आते ही कहानी को बुना गया है, और इसे बुनने में एक अदद खलनायक और उसकी बाजीगरी ठूंसी गई हैं। फिल्म के बारे में एक बात साफ कही जा सकती है कि अलादीन बच्चों को लुभाएगी। बच्चों को लुभाने वाले जिन के जादू, नायक की बेवकूफी और हीरो की नाक पकडकर उसे फूला कर गुब्बारा बनने जैसे एनिमेशन बच्चों के बीच अलादीन को लोकप्रिय कर सकते है। लेकिन, फिल्म को गंभीरता से देखने वाले लोगों को फिल्म पसंद आएगी, इसमें संदेह है क्योंकि न तो फिल्म में रोमांस का जोरदार तडका है, और न एक्शन की जबरदस्त डोज। कॉमेडी है, लेकिन उस स्तर की नहीं कि लोग हंस हंसकर पागल हो जाएं। नंगपन की गुंजाइश है भी नहीं, और निर्देशक ने रखी भी नहीं, और न गाने ऎसे है कि जुंबा पर चढ जाएं। तो दो शब्दों में फिल्म सिर्फ बच्चों के लिए है। फिल्म के मुख्य नायक रितेश देशमुख है, लेकिन सही मायने में फिल्म के हीरो अमिताभ बच्चन ही हैं।
फिल्म की कहानी अलादीन चटर्जी (रितेश देशमुख)से शुरू होती है जो अनाथ है और ख्वैश शहर में रहता हैं। अलादीन को बचपन से ही कासिम और उसके गुर्गे लगातार परेशान करते हैं, लेकिन उसकी जिंदगी में जास्मिन (जैक्लीन फर्नाडिस) का प्रवेश होते ही सबकुछ तेजी से बदल जाता हैं। जास्मिन उसे एक जादुई चिराग देती हैं।
जीनियस यानी जेनी (अमिताभ बच्चन) इसी जादुई चिराग का गुलाम है और उसके कहे हर आदेश को उसे मानना पडता हैं। जेनी जल्द से जल्द इस गुलामी से दूर जाना चाहता हैं और इसके लिए वो अलादीन की तीन ख्वाहिशें पूरी करने को भी राजी हैं। अलादीन को इसके लिए तैयार करने के इरादे से जेनी उसके हर काम में टांग अडाने की कोशिश भी करता हैं। अलादीन पहली दो ख्वाहिशें बरबाद कर देता है। लेकिन, तीसरी ख्वाहिश से कहानी में नए मोड आने शुरू होते है। कहानी में रिंगमास्टर (संजय दत्त) की एंट्री होती है और फिल्म का रूख पूरी तरह बदल जाता है। रिंगमास्टर को एक जादुई शीशे के जरिए मालूम होता है कि उसे मारने का काम अलादीन को सौपा गया है, लिहाजा वो अलादीन को खत्म करने के इरादे से पहुंचता है। लेकिन बॉडीगार्ड जिनी से पार पाना भी तो आसान नहीं। फिल्म में रितेश आत्मविश्वासी लगे और अपने किरदार की तरह ही लग रहे है। फिल्म में रितेश की हीरोइन बनी जैक्लीन फर्नाडिस का अभिनय ठीक ही है।
फिल्म में संजय दत्त का किरदार समझने लायक नहीं लगा। फिल्म में जिन्न का किरदार निभा रहे महानायक अमिताभ बच्चन का किरदार बच्चों को शायद पसंद आ जाए। फिल्म में बिग बी के संवाद में कमी लगेगी। फिल्म का गीत संगीत साधारण है। साहिल खान स्टाइल से लेकर अभी तक एक्टिंग में खास परिपक्व नहीं हो पाए है। रमा विज काफी दिनों बाद दिखी है। कुछ किरदारों के होने और उनके उस अंदाज में बिहेव करने का लॉजिक समझ नहीं आता। फिल्म कुछ लंबी है, लिहाजा आखिर में थोडी अखरती है। इसके अलावा एक बात और अखरती है। वो ये पूरी फिल्म में अलादीन के चिराग को लैंप कहा गया है। एक बार भी चिराग कह दिया जाता तो कॉन्वेंट एजुकेटेड बच्चों को लैंप का एक अर्थ चिराग भी कम से कम पता चल जाता।
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