बॉलीवुड के खिलाडियों के खिलाडी अक्षय कुमार आज 44 वर्ष के हो गए हैं। बीस साल से फिल्म इंडस्ट्री में जमे हुए इस अभिनेता ने गत कुछ वर्षो में अपने अभिनय करियर में जो मुकाम हासिल किया है वह अपने आप में एक मिसाल है। बिना किसी फिल्मी बैक ग्राउण्ड के इस क्षेत्र में अपनी एक पहचान बनाने वाले अक्षय कुमार का कहना है कि यदि आप पूरी ईमानदारी और मेहनत से किसी काम को करने का निश्चय करते हैं तो यह निश्चित है कि आप सफलता प्राप्त करेंगे। मैं फिल्मों में आने से पहले बैंकाक में शेफ व वेटर का काम करता था। इसके साथ ही कराटे सिखाया करता था। भारत लौटने के बाद भी मैंने कराटे सिखाने का काम जारी रखा। उन्हीं दिनों किसी ने मुझसे कहा कि अच्छा कद है, अच्छा लुक है क्यों नहीं फिल्मों में कोशिश करते। उस शख्स की बात सुनने के बाद मैंने सोचा कि इन्हें मेरे अन्दर कुछ तो ऎसा नजर आया होगा जो उन्होंने मुझसे यह बात कही। मैंने इस दिशा में प्रयास करना शुरू कर दिया। मेरा यह प्रयास रंग लाया और मुझे पहली बार मॉडलिंग करने का मौका मिला।
उस एड से मुझे इतना पैसा मिला जितना मैं महीना भर मेहनत करके भी नहीं कमा पाता था। बस मैंने सोच लिया कि मुझे इसी क्षेत्र में काम करना है और आज बीस साल से मैं इस फिल्म लाइन में बेहद कठिन प्रतिस्पर्धा के दौर में बना हुआ हूं। न उसका कोई फिल्मी बैकग्राउंड था, न कोई गॉडफादर। लेकिन उसमें संघर्ष करने का माद्दा था, फौलादी इरादे थे और वह हार कभी नहीं मानता था। उसने जी तो़ड मेहनत की और आज उस राजीव हरी ओम भाटिया को दुनिया अक्षय कुमार के नाम से जानती हैं।
उनकी इसी बात को ध्यान में रखते हुए फिल्म “खिलाç़डयों का खिल़ाडी” में एक गाना उन पर फिल्माया गया है- ना हम अमिताभ, ना दिलीप कुमार, ना किसी हीरो के बच्चे, हम हैं सीधे-सादे अक्षय-अक्षय…” जो उनकी कहानी बयां करता है।
प्रमोद चRवर्ती ने फिल्म “दीदार” के लिए सबसे पहले राजीव हरि ओम भाटिया को साइन किया। उन्हें यह नाम पसन्द नहीं आ रहा था। काफी सोच विचार के बाद उन्होंने राजीव हरिओम भाटिया का नाम बदलकर अक्षय कुमार कर दिया और फिल्म उद्योग की परम्परा के अनुसार वे अक्षय कुमार के नाम से प्रसिद्ध हो गए। हालांकि प्रमोद चक्रवर्ती की यह फिल्म जब तक प्रदर्शित हुई उससे पहले 1992 में अक्षय की राज सिप्पी निर्देशित सौगंध पहली फिल्म बन चुकी थी।
सौंगध में अक्षय कुमार के सामने दो बडे सितारे राखी और मुकेश खन्ना थे। मुकेश खन्ना बॉलीवुड में नायक बनने आए थे। उन्हें जूही नामक प्रेम कहानी में नायक का किरदार निभाने का मौका मिला। उसके बाद वे कुछ और फिल्मों में नजर आए लेकिन दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन की नकल करने के चक्कर में वे असफल सिद्ध हुए। यह तो भला हो बी.आर. चोपडा का जिन्होंने उन्हें महाभारत में लिया, जिसके बाद उन्हें फिल्मों में अपनी उम्र से बडी उम्र के किरदार निभाने का मौका मिला। सौंगध की सफलता में सबसे बडा योगदान राखी का था, लेकिन सफल फिल्म होने के कारण अक्षय कुमार को भी दर्शकों ने स्वीकारा। इसके बाद उनकी डांसर, खिल़ाडी और मि. बांड जैसी फिल्में रिलीज हो चुकी थीं।
अपने करियर के शुरूआती दौर में अक्षय कुमार के चेहरे पर भाव नहीं आते थे अर्थात् उनका चेहरा फिल्म में लकडी के पट्टे की तरह नजर आता था। इसलिए उन्हें “वुडन एक्टर” भी कहा गया, लेकिन उनकी डांसिंग स्टाइल और एक्शन सीन में महारत को देख दर्शक उनके दीवाने होने लगे। जब अक्षय ने देखा की उनकी एक्शन इमेज को दर्शक पसन्द कर रहे हैं उन्होंने उन्हीं फिल्मों को स्वीकार करना शुरू किया जिसमें उन्हें मारधाड करने का भरपूर मौका मिल रहा था। इस कडी में उन्हें वीनस की फिल्म खिलाडी मिली जिसकी सफलता ने उन्हें बॉलीवुड में वो जमीन दी जिसके लिए वे संघर्ष कर रहे थे। इसी बीच खिल़ाडी की सफलता ने उन्हें अचानक आगे कर दिया।
शुरूआत में उन्होंने छोटे बैनरों के लिए फिल्में की। इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर औसत सफलता हासिल की और अक्षय के पैर जमाने में मदद की। फिर उनकी खिल़ाडी नामक फिल्मों का दौर शुरू हुआ।
“मैं खिल़ाडी तू अऩाडी” (1994), सबसे ब़डा खिल़ाडी (1995), खिलाç़डयों का खिल़ाडी (1996), मिस्टर और मिसेस खिल़ाडी (1997) और इंटरनेशनल खिल़ाडी (1999) जैसी फिल्में रिलीज हुईं और सभी ने अपनी लागत से ज्यादा व्यवसाय किया। खिलाडी की सफलता के उन्हें यशराज फिल्म्स की “ये दिल्लगी” (1994) और त्रिमूर्ति फिल्म्स की “मोहरा” (1994) जैसी फिल्में भी मिली, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर अभूतपूर्व सफलता दर्ज की।खासकर मोहरा ने, इस फिल्म में रवीना टंडन और अक्षय पर फिल्माया गया गीत तू चीज बडी है मस्त-मस्त ने न सिर्फ श्रोताओं को झुमाया बल्कि टिकट खिडकी पर दर्शकों को वापस लौटने पर मजबूर किया।
यह वह दौर था जब सनी देओल, जैकी श्रॉफ, अनिल कपूर जैसे सितारों का दबदबा था। आमिर खान, शाहरूख खान और सलमान खान ने भी अपना प्रभाव साबित कर दिया था। इन स्टार्स के बीच अक्षय भी अपनी चमक बिखेरने में कामयाब हुए। सन 2000 के आसपास बॉलीवुड की फिल्मों के कंटेंट में बदलाव की हवा बहने लगी। जिस तरह की फिल्में अक्षय करते थे उन्हें तेजी से नापसंद किया जाने लगा था। अक्षय ने इस बात को बहुत पहले सूंघ लिया और तेजी से अपने आपको बदला। ऎसे वक्त उनके हाथ “हेराफेरी” और धडकन (2000) जैसी फिल्में लगी। हेराफेरी और धडकन दोनों अलग-अलग मिजाज की फिल्में थीं। हेराफेरी में कॉमेडी करते हुए अक्षय बहुत पसंद किए गए। धडकन के जरिए उन्होंने दस साल के करियर में दर्शकों के साथ-साथ बॉलीवुड के दिग्गज निर्माताओं को भी आकर्षित किया और साबित किया कि वे वुडन एक्टर नहीं हैं बल्कि उनके चेहरे पर भी जबरदस्त भाव भंगिमाएं आती हैं। इन फिल्मों से पहले अक्षय ने सुनील दर्शन के निर्देशन में जानवर नामक फिल्म की जिसमें उन्होंने एकल नायक की जबरदस्ती भूमिका को परदे पर पेश किया था। करिश्मा कपूर के साथ की गई उनकी यह फिल्म बॉक्स ऑफिस के तमाम रिकॉर्ड तोडने में कामयाब रही थी, लेकिन तब यह कहा गया कि बिल्ली के भाग से छींका टूटा है अर्थात् यह तो ऎसे ही सफल हो गई है।
लेकिन फिर धर्मेश दर्शन के निर्देशन में आई वीनस की धडकन ने उन्हें मजबूती के साथ पेश किया। धडकन की सफलता में जहां निर्देशन, अभिनय का साथ रहा वहीं इस फिल्म के संगीत ने भी दर्शकों और श्रोताओं को खासा प्रभावित किया और यह फिल्म उनके करियर का अहम मो़ड साबित हुई। ध़डकन (2000), आंखें (2002), अंदाज (2003), खाकी (2004) जैसी फिल्मों ने साबित किया कि वे अच्छा अभिनय भी कर सकते हैं। एक्शन से ध्यान हटाकर उन्होंने कॉमेडी पर फोकस किया और परिणाम बेहतरीन रहे।वर्ष 2006 के बाद उनके करियर का स्वर्णिम दौर शुरू हुआ। उनकी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया। वे खान तिक़डी के समकक्ष ख़डे हो गए। आमिर खान तक यह मानने लगे कि अक्षय की फिल्मों को जो शुरूआत मिलती है वो अन्य किसी अभिनेता की फिल्म को नहीं मिलती। फिल्म प्रदर्शन के बाद पहले तीन दिन अक्षय के नाम पर टिकट बिकने लगे। नमस्ते लंदन (2007), हे बेबी (2007), भूल भुलैया (2007), वेलकम (2007), सिंह इज किंग (2008), दे दना दन (2009) और हाउसफुल (2010) जैसी फिल्मों ने उन्हें सुपरस्टार का दर्जा दिला दिया। इन फिल्मों की सफलता के बाद बॉलीवुड में अक्षय कुमार आमिर खान के बाद सबसे ज्यादा पारिश्रमिक वसूलने वाले अदाकार बन गए और यहीं पर उनसे चूक हुई। उनकी बढती कीमत से फिल्म का बजट बढ़ने लगा और 60-70 करोड रूपये का व्यवसाय करने के बावजूद उनकी फिल्में फ्लॉप हुई।
इनमें ब्लू (2009), खट्टा मीठा (2010), एक्शन रिप्ले (2010) और तीस मार खां (2010) इस बात का सबूत हैं। इन फिल्मों ने कई हिट फिल्मों से ज्यादा व्यवसाय किया, लेकिन लागत की मार इन फिल्मों पर प़डी। तीस मार खां के बाद अक्षय की अभी तक कोई फिल्म नहीं आई है। लेकिन वे अभी भी वापसी का माद्दा रखते हैं। फ्लॉप फिल्मों के बावजूद उनके प्रशंसकों की संख्या में कोई गिरावट नहीं आई है। वे अक्षय को अभी भी उतना ही चाहते हैं। इस वक्त वे देसी बॉयज, हाउसफुल 2, रॉडी राठौर, वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई-2 जैसी फिल्में कर रहे हैं, जिनसे बॉलीवुड को बेहद उम्मीद है।
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