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Sunday, December 20, 2009

किक बॉक्सिंग सीख रहे है जॉन

बॉलीवुड अभिनेता जॉन अब्राहम के पास इन दिनों काफी काम है। शिरीष कुंदर की फिल्म के लिए उन्हें हॉलीवुड अभिनेत्रियों के लिए खुद को तैयार करना है। इसके अलावा हुक या कु्रक और लव 1-800 की शूटिंग भी हैं। दोस्ताना-2 के लिए भी कुछ नया पक रहा है, वैसे अभी इसकी शूटिंग में कुछ वक्त बचा हुआ हैं। लिहाजा जॉन ने समय का सद्उपयोग अपने शौक पूरा करने में कर रहे हैं। वैसे जॉन समझदार है, इसलिए ऎसे शौक पाल रहे हैं, जो फिल्म लाइन में भी उनके काम आएं।
जॉन अब्राहम स्पोट्र्स के दीवाने हैं। लिहाजा उन्होंने लंदन की राह पकड ली हैं और यहां वो किक बॉक्सिंग करना सीख रहे हैं। ये खेल उन्हें संतुष्टि और फिटनेस तो देगा ही, साथ ही इसमें सीख गए पैतरों का उपयोग जॉन निशिकांत कामथ की फिल्म में भी कर सकेंगे। निशिकांथ की अगली फिल्म में जॉन एक किक बॉक्सर का किरदार अदा कर रहे हैं। वैसे जॉन के करीबियों का कहना है कि जॉन जो भी करते है, मन लगाकर करते है और ये निश्चित है कि किक बॉक्सिंग में महारत लेकर ही लंदन से लौटेंगे।

Monday, November 16, 2009

2012: धरती का विनाश

2012 निर्माता: कोलंबियां पिक्चर्स और ए सेन्ट्रोपॉलिस प्रोडक्शन
निर्देशक: रोलैंड एम्मरिच
कलाकार: जॉन कुजाक, डैनी ग्लोवर, श्वेतल एजिफर, ऑलिवर प्लैट और थैंडी न्यूटॉन

"2012" फिल्म के निर्माताओं ने फिल्म को बेचने के लिए इस बात का प्रचार किया है कि सचमुच तीन साल बाद 21 दिसंबर के दिन दुनिया में तबाही मचेगी। धरती के भीतरी हिस्से का तापमान तेजी से बढ़ेगा और दुनिया नष्ट हो जाएगी। माया सभ्यता के कैलेण्डर के हवाले से निर्देशक रौलेंड एमरिक की यह फिल्म इसलिए देखने लायक बनी हैं कि इसमें ग्राफिक्स के साथ ऎसे बेहतरीन दृश्यों की रचना की गई हैं जिसे देखकर आपको एक बार यह लग सकता है कि इस धरती पर या तो कभी तबाही होगी नहीं और यदि होगी तो वह इतनी भयावह होगी, जिसकी कल्पना करना भी नामुमकिन हैं। फिल्म की कहानी अमरीका से शुरू होती हैं जहां सरकार को भूगर्भशाçस्त्रयों ने चेताया है कि विनाश होने ही वाला हैं।
लिहाजा सरकार ऎसे चार जहाजों का निर्माण चीन में कर रही हैं जो बडे से बडे हादसे को भी झेलने की क्षमता रखते हैं। इन जहाजों पर दुनिया के राष्ट्रध्यक्षों, कुछ जानवरों की प्रजातियों और दुनिया की बेहतरीन नस्ल के इंसानों को रखने की कवायद चल रही हैं। दुर्भाग्य से इस पूरी खोज के सूत्रधार एक भारतीय वैज्ञानिक के परिवार को बचाने की फिक्र किसी को भी नहीं हैं। एक पिता जैक्सन कर्टिस अपने परिवार को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा हैं और वह उसे किस तरह बचाता हैं, इसी से कहानी का ताना बाना आगे बढ रहा हैं। अंतत: उम्मीद से ज्यादा लोगों को जहाज पर चढने की इजाजत मिल जाती हैं।
कहानी का ताना बाना बेहतरीन ढंग से बुना गया है। हॉलीवुड की और फिल्मों की तरह अमरीकी श्रेष्ठता और अपने लोगों के लिए राष्ट्राध्यक्ष की कुर्बानी को दिखाने की कोशिश की गई हैं, जब अमरीका के अश्वेत राष्ट्रपति आम लोगों के बीच खोए हुए लोगों को ढूंढने में मदद करते हुए मारे जाते हैं। ठीक उसी समय दुनिया के दूसरे राष्ट्राध्यक्ष अपने लोगों को मरने के लिए छोड आए हैं और खुद जहाज पर सुरक्षित हैं। लिखने से ज्यादा यह फिल्म देखने में बेहतर हैं। क्योंकि आधी से ज्यादा फिल्म तो कम्प्यूटर पर ही बनाई गई हैं, क्योंकि यह विचार ही रोमांच पैदा करता हैं। खासकर यह उस निर्देशक की फिल्म है जिसने "इंडिपेंडेंस डे" में व्हाइट हाउस को उडा दिया था। "टुमारो नेवर डाईज" में धरती पर बर्फ फैला दी थीं और अब उसी कडी में प्रलय लेकर आए हैं। फिल्म के सभी पात्रों का अभिनय कमाल का हैं। फिर भी वैज्ञानिक की भूमिका में श्वेतल एजिफर सब पर भारी रहे।