Thursday, November 3, 2011

अनुभवी और दिग्गज निर्देशकों की वापसी

फिल्मों को लगातार मिल रही कामयाबी ने एक बार फिर से बॉलीवुड को खुशियों से लबालब कर दिया है। इन सफलताओं ने बॉलीवुड में उन निर्देशकों को वापस आने के लिए मजबूर कर दिया है जिन्होंने निर्देशन की कमान अपने उत्तराधिकारियों को या फिर निराशा में डूबकर स्वयं छो़ड दी थी। अपने समय में बॉलीवुड को कई हिट, सुपर हिट और मील का पत्थर बन चुकी फिल्में देने वाले कुछ ऎसे निर्देशकों ने अपनी वापसी की घोषणा की है जिनको आज की युवा पीढी देखना व सुनना पसन्द करती है। इन निर्देशकों की पुरानी फिल्मों को दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर देखते हुए इनके बारे में बहुत कुछ कहा जाता है। जिन निर्देशकों ने अपनी वापसी की तैयारी शुरू कर दी है उनमें शामिल हैं—रोमांटिक और रूमानी फिल्में बनाने वाले 80 वर्षीय यश चोपडा, जिनके बैनर यशराज फिल्म्स को आज उनके बडे पुत्र आदित्य राज चोपडा बेहद कामयाबी के साथ चला रहे हैं। दूसरे निर्देशक हैं "शोले" जैसी कालजयी फिल्म बनाने वाले रमेश सिप्पी, जिन्होंने अपने निर्देशन में अन्तिम फिल्म "जमाना दीवाना" दी थी। तीसरे निर्देशक हैं "त्रिदेव" जैसी एक्शन थ्रिलर बनाने वाले राजीव रॉय जो माफिया की धमकियों से डरकर विदेश जा बसे थे। कुछ और भी ऎसे निर्देशक हैं जो अब फिर से लाइट, साउण्ड, एक्शन, कैमरा और स्टार्ट बोलने को बेताब हैं। एक नजर इन निर्देशकों पर— बॉलीवुड में जिन आगामी फिल्मों को लेकर भारी उत्सुकता है, उनमें यशराज बैनर की अगले साल दीपावली पर रिलीज होने वाली अनाम फिल्म प्रमुख है। यूँ तो यशराज के बैनर तले बनने वाली सभी फिल्मों पर इंडस्ट्री की निगाह रहती है लेकिन यह फिल्म इस मायने में खास है कि इसे स्वयं यश चोपडा निर्देशित करने जा रहे हैं। निर्देशक के रूप में बेहद लंबी और सफल पारी खेलने वाले यश चोपडा की एक तरह से यह वापसी ही कही जा रही है, क्योंकि पूरे सात साल बाद वे लाइट्स, कैमरा, एक्शन कहने जा रहे हैं। "वीर जारा" (2004) के बाद उन्होंने कोई फिल्म निर्देशित नहीं की है। इसके बजाए उन्होंने अपने बैनर तले कई प्रतिभावान युवा निर्देशकों को फिल्म बनाने का मौका दिया है। वैसे गौरतलब है कि उन्होंने "वीरजारा" को भी आठ साल के लम्बे गैप के बाद बनाया था। "वीरजारा" से पहले उन्होंने अपने निर्देशन में "दिल तो पागल है" दर्शकों के सामने रखी थी, जिसने बॉलीवुड में मील का पत्थर का खिताब पाया था। यश चोपडा की पहचान रोमांटिक फिल्मों के बेमिसाल निर्देशक के रूप में रही है। हालाँकि उन्होंने "धर्मपुत्र", "वक्त", "जॉनी मेरा नाम", "नाखुदा", "दीवार", "त्रिशूल", "मशाल" आदि भी निर्देशित की हैं लेकिन यश चोपडा ब्रांड के रूप में "दाग", "कभी-कभी", "सिलसिला", "चाँदनी", "लम्हे", "डर", "दिल तो पागल है" और "वीर जारा" को ही पहचाना जाता है। कोई आश्चर्य नहीं कि उनकी वापसी वाली फिल्म भी रोमांटिक फिल्म हो। अस्सी वर्ष की आयु के होने आए यश चोपडा के लिए यह चुनौती ही होगी कि वे प्यार की ऎसी भाषा अपनी फिल्म के जरिए बोलें जो आज के युवा दर्शकों को अपनी-सी लगे। इस बात स्वयं यश चोपडा भी स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि यह काम बेहद चुनौतीपूर्ण होगा। लेकिन वे इस बात से आश्वस्त करते हैं कि उनकी फिल्म की आत्मा पकी उम्र की होगी लेकिन उसका दिल जवां होगा। इस फिल्म को लेकर उत्सुकता इसलिए भी है कि इसमें पहली बार शाहरूख खान और कैटरीना कैफ की जोडी नजर आएगी, साथ ही अनुष्का शर्मा भी होंगी। यही नहीं, गीतकार के रूप में गुलजार और संगीतकार के रूप में ए.आर. रहमान भी पहली बार यश चोपडा के साथ जुड रहे हैं। इस प्रकार अपनी वापसी की घोषणा कर यश चोपडा ने एक साथ कई धमाके कर डाले हैं। यश चोपडा के बाद बीते दिनों एक और निर्देशक ने मैदान में लौटने का ऎलान कर इंडस्ट्री में खलबली मचा दी है। ये हैं युगांतकारी ब्लॉकबस्टर "शोले" बनाने वाले रमेश सिप्पी।

सत्तर के दशक में रमेश सिप्पी ने अपनी पहचान प्रतिभा सम्पन्न युवा निर्देशक के रूप में बनाई थी, जो तकनीकी पक्ष में पश्चिम की फिल्मों को टक्कर देने को तत्पर थे। उनकी पहली फिल्म "अंदाज" (जिसमें शम्मी कपूर और हेमा मालिनी के साथ राजेश खन्ना ने मेहमान भूमिका निभाई थी) ठीक-ठाक चली थी, लेकिन दूसरी फिल्म "सीता और गीता" सुपरहिट रही। "सीता और गीता" को आज भी कॉमेडी फिल्मों में अग्रणी माना जाता है। इसके बाद रमेश सिप्पी के निर्देशन में आई तीसरी फिल्म "शोले" से तो उन्होंने इतिहास ही रच डाला। इसने कामयाबी के सारे रिकॉर्ड तोड डाले और देश की सबसे कामयाब व सबसे यादगार फिल्मों की सूची में हमेशा के लिए दर्ज हो गई। इस शिखर को छूने के बाद रमेश सिप्पी बतौर निर्देशक नीचे की ओर तेजी से गिरने लगे। "शोले" के बाद उन्होंने "शान" नामक फिल्म बनाई। समुद्र के बीच स्थित जजीरे में बनाए गए अपने विशेष सैट के लिए "शान" को हमेशा याद किया जाएगा। "शान" ने बॉक्स ऑफिस पर विफलता पाई। फ्लॉप होने के बावजूद "शान" की दो बातें ऎसी रही जो हमेशा दर्शकों की निगाह में रहती हैं। इस फिल्म की नामावली के साथ फिल्माया गया शीर्षक गीत "दोस्तों से प्यार किया, दुश्मनों से बदला लिया, जो भी किया हमने किया शान से. . ." उषा उथुप की आवाज में रिकॉर्ड किया गया यह गीत अपने प्रभावी फिल्मांकन की वजह से आज भी दर्शकों के जेहन में दौडता है। इसके अतिरिक्त इस फिल्म का खलनायक "शाकाल" भी दर्शकों के जेहन में आता है। सामान्य बातचीत में भी यदि "शाकाल" का नाम लिया जाता है तो जेहन में "शान" के गंजे खलनायक कुलभूषण की तस्वीर उभर आती है। "शान" की असफलता के बाद रमेश सिप्पी ने अपनी फिल्म "सागर" के जरिए बॉलीवुड को "बॉबी" गर्ल डिम्पल कपाडिया से पुन: परिचित कराया। "सागर" को दर्शकों ने केवल खूबसूरत फिल्मांकन व संगीत के लिए सराहा। इसके बाद रमेश सिप्पी ने "जमीन", "भ्रष्टाचार", "अकेला" और "शक्ति" जैसी फिल्में दीं, जिन्हें देखकर यकीन करना मुश्किल था कि इन्हें उसी रमेश सिप्पी ने बनाया है जो "शोले" के रूप में सिनेमा की पाठ्य पुस्तक रच चुके हैं। हालांकि रमेश सिप्पी की "शक्ति" को फिल्मकार आज में बॉलीवुड की पिता-पुत्र के रिश्ते पर बनी महान् फिल्म मानते हैं।

पिता-पुत्र के आपसी रिश्ते पर बॉलीवुड में कई फिल्में बनी हैं लेकिन जो भावनात्मक टकराव इस फिल्म में पटकथाकार सलीम-जावेद ने दिखाया वह किसी अन्य फिल्म में उतनी शिद्दत से नजर नहीं आया जितना "शक्ति" में नजर आया था। फिल्मों की लगातार असफलता से घबराए रमेश सिप्पी ने दूरदर्शन का दामन थामा और अपने निर्देशन की कुशलता से उन्होंने "बुनियाद" नामक वो इतिहास लिखा जो आज भी टीवी इंडस्ट्री का सबसे महंगा और सर्वाधिक आय प्राप्त करने वाला धारावाहिक माना जाता है। इस धारावाहिक को मनोहर श्याम जोशी ने लिखा था। मनोहर श्याम जोशी ने रमेश सिप्पी के लिए "भ्रष्टाचार" की पटकथा भी लिखी थी, लेकिन जो पैनापन व कलम का जादू वे "बुनियाद" में दिखा पाए थे, वह चीज "भ्रष्टाचार" में नजर नहीं आई थी। रमेश सिप्पी ने टीवी पर "बुनियाद" से सफलता पाई लेकिन "गाथा" के साथ यहाँ भी फ्लॉप रहे। "जमाना दीवाना" (1995) के बाद उन्होंने कोई फिल्म निर्देशित नहीं की। सोलह साल बाद वापसी करने के बारे में रमेश सिप्पी का कहना है कि इतने बरस बाद ही मुझे ऎसी स्क्रिप्ट हाथ लगी, जिसे पढकर मुझमें फिर निर्देशन करने की इच्छा जागी। फिलहाल वे केवल इतना बताते हैं कि इस फिल्म में रोमांस भी होगा और एक्शन भी। साथ ही वे कहते हैं कि भले ही वे 64 के हों लेकिन उनकी फिल्म युवाओं को दृष्टि में रखकर बनाई गई होगी जिसमें में ताजगी देखने को मिलेगी। यश चोपडा और रमेश सिप्पी के बाद एक और निर्देशक ने वापस आने की बात कही है। ये हैं "त्रिदेव", "विश्वात्मा", "मोहरा" और रहस्यमय थ्रिलर "गुप्त" बनाने वाले राजीव राय। राजीव राय के पिता गुलराय बॉलीवुड के पहले ऎसे वितरक व पूंजीपति थे, जिन्होंने फिल्मों के वितरण के साथ-साथ निर्माण का कार्य शुरू किया था। उन्होंने यश चोपडा को निर्देशक लेकर अपने बैनर त्रिमूर्ति फिल्म्स के बैनर तले पहली फिल्म "जॉनी मेरा नाम" बनाई, जो अपने जमाने की सबसे महंगी फिल्म थी। "जॉनी मेरा नाम" को बॉलीवुड में इसलिए भी याद किया जाता है कि इस फिल्म से अपने जमाने के मशहूर नायक प्रेमनाथ ने कई वर्षो के संन्यास के बाद अचानक बतौर खलनायक जबरदस्त वापसी की थी। इसके साथ ही "जॉनी मेरा नाम" को इसलिए भी याद किया जाता है जब यह फिल्म राजस्थान की राजधानी जयपुर के मानप्रकाश नामक सिनेमा हाल (जो अब बन्द हो चुका है) में सिल्वर जुबली सप्ताह मना रही थी, तब इस सिनेमा हॉल की बॉलकनी अर्थात् ऊपरी हिस्सा टूट गया था। राजीव राय के निर्देशन में बनी "त्रिदेव" और "मोहरा" के गीत "ओए ओए" और "तू चीज बडी है मस्त मस्त" से तहलका ही मचा दिया था। हाल ही में इस वर्ष प्रदर्शित हुई निर्देशक इन्द्र कुमार की "डबल धमाल" में एक बार फिर से "ओए-ओए" को सफलता के लिए भुनाया गया था। संगीतमय थ्रिलर फिल्मों के निर्देशक के रूप में राजीव ने अपनी पहचान बनाई लेकिन अंडरवल्र्ड के बॉलीवुड पर कसते शिकंजे ने उनके करियर पर ब्रेक लगा दिया। 1997 में उन पर हमला हुआ, जिसमें वे बाल-बाल बचे। इसके बाद वे देश छोडकर अज्ञातवास में चले गए। लंदन में बिताए चार साल के अज्ञातवास के बाद उन्होेने लौटकर फिर से निर्देशन का काम सम्भाला और "प्यार इश्क और मोहब्बत" (2001) तथा "असंभव" (2004) बनाई लेकिन ये दोनों ही पिट गईं। इसके बाद वे फिर विदेश चले गए थे। पिछले दिनों उनकी वापसी की चर्चा बॉलीवुड में छिडी तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे मुंबई लौटकर फिर निर्देशन की कमान संभालने की तैयारी में हैं। हालाँकि अभी तक उनके द्वारा बनाई जाने वाली फिल्म की कहानी, कलाकार व अन्य तकनीकी पक्षों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। कहा तो यह भी जाने लगा है कि राजीव राय की वापसी की खबरें सिर्फ अफवाह है, इनमें कोई सच्चाई नहीं है। इन तीन निर्देशकों की चर्चा से जहां बॉलीवुड में खुशनुमा माहौल बना उसमें जुडे एक और निर्देशक के नाम ने न सिर्फ सबको हैरान और आश्चर्यचकित किया बल्कि एक सुगबुगाहट ने जन्म लिया कि क्या वे वैसा जादू फिर से जगाने में सफल होंगे जो उन्होंने सत्तर के दशक के अन्तिम वर्षो में जगाया था। जिस निर्देशक की बात हम करने जा रहे हैं उसे दर्शक नाम से नहीं बल्कि उनके द्वारा निर्देशित की गई एक मात्र फिल्म से जानते हैं जिसने आज बॉलीवुड में एक उद्योग का रूप धारण कर लिया है। हम बात कर रहे हैं 1978 में आई बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन को लेकर बनाई गई फिल्म "डॉन" के निर्देशक चन्द्रा बारोट की। 1978 में आई अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्म "डॉन", जिसके रीमेक और सीक्वल को युवा निर्माता निर्देशक फरहान अख्तर ने इन दिनों एक उद्योग बना लिया है। "डॉन" के बाद चन्द्रा बारोट ने एक-दो फिल्में शुरू की थीं लेकिन वे कभी पूरी नहीं हुई। अब पूरे 33 साल बाद उन्होंने एक नहीं, दो फिल्मों से वापसी की बात कही है। इनमें एक तो "नील को पकडना..." नामक कॉमेडी फिल्म होगी और दूसरी एक अनाम थ्रिलर होगी। अपने समय में बेहतरीन कॉमेडी फिल्म बनाने वाली महिला निर्देशिका सई परांजपे ने भी अपनी वापसी की घोषणा की है। "चश्मे बद्दूर", "कथा", "स्पर्श" आदि बनाने वाली सई परांजपे ने भी कुछ समय पूर्व "खून तो होना ही था" से वापसी का ऎलान किया था लेकिन मामला फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया लगता है। बॉलीवुड में आजकल मिस्टर परफैक्शनिस्ट के नाम से जाने वाले आमिर खान के चचेरे भाई जिन्होंने आमिर खान को लेकर बॉलीवुड को "कयामत से कयामत तक", "जो जीता वही सिकंदर", "अकेले हम अकेले तुम" तथा शाहरूख खान और ऎश्वर्या राय को लेकर "जोश" जैसी फिल्में बनाने के बाद कुन्नूर जा बसे मंसूर खान ने इंडस्ट्री से किनारा कर लिया था। 2008 में "जाने तू या जाने ना" के सह-निर्माता के रूप में वे फिर इंडस्ट्री से जुडे और हाल ही में कुछ पारिवारिक कार्यक्रमों में भी उन्होंने भाग लिया था। कहा जा रहा है कि आमिर खान उन्हें फिर निर्देशन करने के लिए मनाने के भरसक प्रयास कर रहे हैं। इन निर्देशकों की वापसी का बॉलीवुड में जबरदस्त स्वागत हुआ है। अब देखने वाली बात यह है कि क्या ये निर्देशक अपने निर्देशन के जरिए आज की आधुनिक हो चुकी युवा पीढी और उस पीढी को जो उनके समय में युवा थी, फिर से प्रभावित कर पाते हैं या वे चूके हुए साबित होते हैं।

No comments:

Post a Comment