इस शुक्रवार को अमिताभ बच्चन की बुड्ढा होगा तेरा बाप देखने का मौका मिला। फिल्म देखने के बाद दिमाग में सिर्फ और सिर्फ अमिताभ बच्चन ही छाये रहते हैं। उनके चलने का अंदाज, उनके संवाद बोलने की अदा और 68 वसंत देख चुके इस बुड्ढे की ऊर्जा को देखकर स्वयं में अनोखी स्फूर्ति का स्पंदन महसूस किया।
अपने मित्र स्वर्गीय राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में अपना भाग्य आजमाने निकले इस अभिनेता के लिए राजनीति निराशाजनक रही। उन पर बोफोर्स तोप सौदे में दलाली का आरोप लगा। इस आरोप से उबरने में अमिताभ को लम्बा वक्त लगा, जिसने उनके फिल्मी करियर को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया।
संस्कारों में मिले अंतिम क्षण तक लडने की क्षमता की वजह से यह अदाकार बीसवीं सदी के अंतिम वर्षो में नए सिरे से निर्माता-निर्देशकों के यहां स्वयं के लिए काम मांगने लगा। उन दिनों उभर चुके सितारों की वजह से अमिताभ को अनदेखा किया जाने लगा लेकिन एक शख्स ने उन्हें फिर से गले लगाया। यह वह शख्स था जिसने अमिताभ के साथ अपने समय की किवदंती बन चुकी फिल्मों- दीवार, कभी-कभी, सिलसिला, काला पत्थर इत्यादि का निर्देशन किया था- यह थे बॉलीवुड के प्रेम गुरू यश चोपडा जिन्होंने उन्हें अपने बेटे द्वारा निर्देशित होने वाली दूसरी फिल्म मोहब्बते में उस समय के सुपर सितारे शाहरूख खान के सामने एक दमदार रोल में पेश किया।
मोहब्बते के किरदार के बाद बॉलीवुड का ध्यान फिर से अमिताभ बच्चन की तरफ गया और निर्देशकों को लगा कि उन्होंने अमिताभ को ठुकरा कर अच्छा नहीं किया। कर्ज के बोझ तले दबे अमिताभ बच्चन ने घर को संभालने और कर्ज को उतारने के लिए अपने परिजनों के विरोध के बावजूद छोटे परदे पर उतरने का निर्णय किया। इस बात को लेकर उनके परिजनों में कुछ मनमुटाव भी हुआ। एक बार तो उन्होंने भी सोचा कि इससे मेरा करियर बिलकुल खत्म हो जाएगा लेकिन अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की अगि्नपथ की कविता को याद करते हुए उन्होंने टीवी के लिए पहला कार्यक्रम पेश किया कौन बनेगा करोडपति।
टीवी चैनल ने इस गेम शो को कुछ इस तरह से प्रचारित किया जिसने अमिताभ को घर-घर में वो शोहरत दिलायी जितनी उन्होंने अपने करियर में भी प्राप्त नहीं की थी। केबीसी की सफलता ने अमिताभ में आत्मविश्वास फूंका जिससे उन्होंने बडे परदे पर सफलतापूर्वक अपनी दूसरी पारी को परवान चढाया।
करोडपति के बाद अमिताभ ने फिल्मों में फिर से कामयाबी पायी। उनकी इस सफलता को देखकर उन्हें सम्पूर्ण विश्व में सदी का महानायक चुना गया। इस दौरान उन्होंने एक रिश्ता-द बाण्ड ऑफ लव, आंखें, वक्त, खाकी, फैमिली, कांटे, शूट आउट एट लोहखण्डवाला, वीरजारा, पहेली के साथ कई ऎसी फिल्में दी जिन्होंने उन्हें न सिर्फ आर्थिक तौर पर मजबूत किया बल्कि बॉलीवुड के कुछ पुराने सितारों को भी वापसी के लिए बाध्य किया। इनमें प्रमुख थे धर्मेन्द्र और राजेश खन्ना।
राजेश खन्ना ने ऋषि कपूर की आ अब लौट चलें से वापसी की थी लेकिन फिल्मी लेखक इस गुजरे सुपर स्टार के लिए किरदारों को लिखने में कामयाब न हो पाए। केबीसी को अमिताभ ने जिस अंदाज में पेश किया और कर रहे हैं वह अपने आप में बॉलीवुड के उन सितारों के लिए एक मिसाल है जो अन्य कार्यक्रमों के प्रस्तोता हैं। अमिताभ ने गरिमामय अंदाज में केबीसी को प्रस्तुत किया है। वे अपने प्रतिभागियों के साथ जिस आत्मीयता और बुर्जुग की तरह व्यवहार करते हैं वह प्रतिभागी को न सिर्फ प्रोत्साहित करता है वरन् उसमें एक नई ऊर्जा भर देता है।
केबीसी के दूसरे संस्करण को मीडिया द्वारा अमिताभ के घोर प्रतिद्वंद्वी करार दिए गए शाहरूख ने पेश किया था लेकिन वे इसके पहले भाग का दस प्रतिशत भी दर्शकों को अपने साथ नहीं जोड पाए, इसी वजह से इस कार्यक्रम की सीमित कडियां पेश की गई। अमिताभ ने 2000 से हुई अपनी वापसी के बाद हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। चाहे वह विज्ञापन जगत हो, टीवी हो या फिर फिल्म निर्माण हो, उन्होंने बेहतरीन काम किया है। अमिताभ के कायल निर्देशक उम्र को दरकिनार करते हुए उनके लिए विशेष किरदार लिखते हैं और बतौर नायक उन्हें अपनी फिल्म में लेकर सफलता का नया इतिहास लिखते हैं।
जिक्र करना चाहेंगे निर्देशक आर.बालाकृष्णन अर्थात् आर. बाल्की का जिन्होंने उन्हें नायक लेकर तब्बू के साथ चीनी कम और विद्या बालन व अभिषेक के साथ पा जैसी उत्कृष्ट फिल्मों में पेश किया।
चीनी कम का कथानक भारतीय समाज में प्रचलित शादी ब्याह में उम्र को लेकर रचा गया करारा व्यंग्य था। यह फिल्म इस मिथक को तोडने का एक सराहनीय प्रयास था। इसके बाद आर.बाल्की ने उन्हें पा के उस किरदार में लिया जिसे करने के लिए शायद ही कोई अभिनेता तैयार होता। अमिताभ ने न सिर्फ ये किरदार निभाया बल्कि इस फिल्म का निर्माण भी उन्होंने स्वयं ही किया। इस फिल्म के लिए उन्हें पुरस्कारों से लाद दिया गया था।
कभी अगि्नपथ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले इस अभिनेता ने राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने वाली समिति की विचारधारा में बदलाव लाने का प्रयास किया। इसी का नतीजा है कि आज सलमान खान की दबंग को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जा रहा है।
बुड्ढा होगा तेरा बाप को देखकर निश्चित रूप से कहना चाहेंगे कि बॉलीवुड में चल रही परिवर्तन की लहर को इस फिल्म के बाद बढावा मिलेगा। इस वक्त जो नए लेखक निर्देशक सीमित दर्शकों को ध्यान में रखकर फिल्में बना रहे हैं उन्हें अपनी सोच को बदलते हुए आम जनता के हिसाब से फिल्मों को बनाने का निर्णय करना पडेगा। इसमें आमिर खान को शामिल होना पडेगा जो कहते हैं कि मेरी फिल्में बिलकुल अलग दर्शक वर्ग के लिए होती हैं।
यह सही है कि ऎसा है लेकिन आम आदमी की जिन्दगी में बढते तनाव और आर्थिक दबाव के दौर में इस प्रकार की फिल्में वक्ती तौर पर तो सफलता प्राप्त कर सकती हैं लेकिन उस दर्शक वर्ग को अपने साथ नहीं जोड सकती है जो अपने तनाव और दबाव भरी जिन्दगी में कुछ पलों के लिए मुक्त होना चाहता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि 68 वष्ाीüय इस युवा की ऊर्जा को देखकर कई शख्स स्वयं में नई स्फूर्ति को महसूस करें और खामोश पडी जिन्दगी को उत्साह के साथ जीने की शुरूआत करें।
फिलहाल इतना ही काफी है। आगे आपके विचारों के बाद हम विस्तृत रूप से अमिताभ बच्वन के ऊपर चर्चा करेंगे।
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