निर्देशक: सोहम शाह
संगीत: सलीम-सुलैमान
कलाकार: संजय दत्त, इमरान खान, श्रुति हासन, मिथुन चक्रवर्ती, डैनी, रवि किशन, रति अगि्नहोत्री, चित्रांशी
समीक्षा: सोहम शाह की फिल्म "लक" एक इंसान के भाग्य पर आघारित है। जिसमें इंसान के आसपास कई समस्याएं घिरी होती है, और दो इंसान एक-दूसरे के लिए समस्याएं पैदा करता है। फिल्म में मानव की सही जीवन शैली को दिखाने की कोशिश की गई है। "लक" भी "घूम" की तरह थोडी पकाऊ है, लेकिन हर बार देखने पर मजा भी आएगा। जिस तरह टीवी पर "बिग बॉस" नुमा कुछ रियलिटी शो दिखाए जाते है जिनमें लोगों को टॉस्क दिए जाते है और कौन शो में रहेगा और कौन नही, इसका फैसला दर्शक करते है, उसी तरह का शो लक फिल्म का मूसा भी आयोजित करता है। फर्क इतना है कि उसके खेल में भाग लेने वाले एक-एक कर मारे जाते है, और जो भाग्यशाली होते है, वो बच जाते है। मूसा "लक" का व्यापार करता है और भाग्यशाली लोगों को वो उठाकर अपने खेल का हिस्सा बना लेता है। लोग इस बात पर पैसा लगाते है कि कौन जिंदा बचेगा।
मूसा लोगों की किस्मत से तरह-तरह से खेलता है। हेलिकॉप्टर में वह सभी को बैठा कर हजारों फीट ऊपर ले जाता है और कूदने को कहता है। तीन पैराशूट ऎसे है, जो खुलेंगे नही। बदकिस्मत मारे जाते है, और किस्मत वाले बच जाते है। जो बचे वे अगले रांउड में फिर जिंदगी और मौत के खेल मे अपना "लक" आजमाते है।
निर्देशक और लेखक सोहम की कहानी का मूल विचार अच्छा है। उसमें नयापन है। वे टीवी पर दिखाने वाले शो को फिल्म में ले आए और उसे लार्जर देन लाइफ का रूप दे दिया, लेकिन कहानी का वे ठीक से विस्तार नही कर पाएं वरना एक अच्छी फिल्म बनाई जा सकती थी। ट्रेन सीक्वेंस के साथ फिल्म की बेहतरीन शुरूआत होती है।
नए-नए किरदार कहानी में जुडते जाते है और कहानी आगे बढती है। उम्मीद बंघती है कि एक अच्छी फिल्म देखने को मिलेगी, लेकिन जल्दी ही फिल्म अपनी दिशा खो बैठती है। मूसा इन लोगों के साथ जिंदगी और मौत के जो खेल खेलता है, वो दिलचस्प नही है कि दर्शकों को बांघकर रखे। एकरसता होने की वजह से फिल्म ठहरी हुई लगती है।
रोमांस और इमोशन पैदा करने की कोशिश की गई है, लेकिन वो जबरदस्ती ठूंसे हुए और बनावटी लगते है। फिल्म का अंत भी हास्यास्पद है। मूसा की अंतिम चुनौती में विजयी होकर राम (इमरान खान) 20 करोड रूपए जीत जाता है। इसके बावजूद वो मूसा के साथ एक और खेल खेलता है। क्यों इसका कोई जवाब नही है। दोनों एक-दूसरे को गोली मार देते है। इसके बाद अस्पताल वाले दृश्य देखकर लेखकों की अक्ल पर हंसी आती है। श्रुति हासन के डबल रोल वाली बात का कोई मतलब नही है। फिल्म में थोडा भ्रम है, लेकिन इतने अभिनेता होने से फिल्म मे रोमांच होना स्वाभाविक है।
फिल्म "लक" के डायलॉग बेहतरीन है। इसके एक संवाद "मुझे पैसों की नही, तुझ जैसों की जरूरत है और मैं खरीदता नही, सिर्फ भाडे पर लेता हूं" ने पूरी फिल्म में जान डाल दी है।
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