निर्देशक: इम्तियाज अली
गीतकार: इरशाद कामिल
संगीतकार: प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार: सैफ अली खान, दीपिका पादूकोण, ऋषि कपूर, राहुल खन्ना, नीतू सिंह
अवघि: 129 मिनट
समीक्षा: अभिनेता से निर्माता बने सैफ अली खान ने अपनी प्रॉडक्शन कंपनी का खाता खोलते हुए किसी तरह का रिस्क नही लिया है। फिल्म "लव आज कल" में जहां सैफ के हिस्से में ज्यादा से ज्यादा फुटेज गई है, वहीं अपने दमदार भावपूर्ण अभिनय की बदौलत दीपिका भी शुरू से अंत तक फिल्म में छाई हुई है। "सोचा न था" और "जब वी मेट" फिल्म बनाने के बाद इम्तियाज अली की पहचान ऎसे निर्देशक के रूप में बन गई है, जो प्रेम कथा पर आघारित फिल्म बनाने में माहिर है। इन दोनों फिल्मों की कहानी में नयापन नही था, लेकिन जो बात इन्हें विशेष बनाती है, वो है इम्तियाज का प्रस्तुतिकरण।
यही वजह है कि लंदन, यूएसए, पंजाब और पुरानी दिल्ली की तंग गलियों के बीच पनपती दो पीढियों की लव स्टोरी मे जब भी इम्तियाज ने पंजाबी मसालों का तडका लगाया, दर्शकों की जमकर वाहीवाही बटोरी।
इस फिल्म में इम्तियाज ने दो पीढियों के लव को कुछ अलग अंदाग में दिखाने की कोशिश की है, जिसमें काफी हद तक वह कामयाब रहे है। लडका-लडकी के बीच प्यार सदियों से चला आ रहा है। पहले कबूतरों से संदेश भेजे जाते थे, और "आई लव यू" कहने में वर्षो बीत जाते थे। अब ई-मेल या एसएमएस से बातचीत होती है। वर्तमान पीढी सेक्स को ही प्यार समझती है, और तू नही तो और सही वाक्य पर विश्वास करते है। प्रेमी के इंतजार में वे उम्र तो क्या कुछ घंटे नही बिता सकते। इन दो पीढियों के प्यार के प्रति नजरिये को "लव आज कल" में रेखांकित किया गया है।
डायरेक्टर ने जहां साठ के दशक में वीर सिंह(ऋषि कपूर)और हरलीन कौर की प्रेम कहानी को सादगी भरे अंदाज में सामाजिक दायरों के बीच पनपती सीघी सादी लव स्टोरी का रूप दिया है, वहीं दूसरी और आघुनिक सभ्यता के बीच लंदन में वीर सिंह के साथ रहे जय वर्घन सिंह(सैफ)की कहानी कुछ और बयां करती है। इम्तियाज की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने करीब दो घंटे की इस फिल्म में दो पीढियों के लव को अलग-अलग अंदाज में पेश किया है। दोनों प्रेम कहानियों को पेश करने में उन्होंने फैमिली क्लास और टीन एजर्स की पसंद का खास ख्याल रखा है। जहां लंदन में वीर सिंह को आज भी याद है कि उसने किन मुश्किलों और विपरीत हालात के बीच अपने पहले प्यार हरलीन कौर को हासिल किया और आज भी उसके साथ खुशहाल जिंदगी गुजार रहे है। वहीं जय को प्यार और किसी एक के साथ पूरी जिंदगी गुजारने की बात सुनकर हंसी आती है।
इस बीच जय सिंह की मुलाकात मीरा पंडित(दीपिका पादूकोण) से होेती है। चंद मुलाकातों के बाद मीरा अपनी फैमिली से जय को मिलाती है, लेकिन जय तभी साफ करता है, कि उसे कभी किसी एक के साथ पूरी जिंदगी गुजारने में यकीन नही है। मीरा के साथ करीब डेढ साल रिलेशनशिप बनाने के बाद जय को लगता है कि अब उन्हे अलग हो जाना चाहिए और वह अपना इरादा मीरा को बताता है। इतना ही नही, मीरा से ब्रेकअप करते वक्त वह अपने नजदीकी दोस्तों को पार्टी देता है। मीरा रिश्ता टूटने के बाद इंडिया चली जाती है और जय को महसूस करती है, कि उसने कुछ खो दिया है। यहीं से कहानी में कुछ टर्न आता है।
जय का किरदार निभाने के लिए सैफ की उम्र ज्यादा है, लेकिन वे इस बात को महसूस नही होने देते है। ऋषि कपूर अब इस तरह की भूमिकाओं में टाइप्ड होते जा रहे है। राहुल खन्ना, हरलीन बनी लडकी को ज्यादा अवसर नही मिले। प्रीतम का संगीत उम्दा है। फिल्म के संवाद बेहतरीन है। तकनीकी रूप से फिल्म सशक्त है। "लव आज कल" प्यार की तरह ही एक खूबसूरत अहसास है, जिसे देखते हुए आपको बोरियत नही होगी।
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