निर्देशक: रंजीत कपूर
संगीत निर्देशक: सुखविंदर सिंह कलाकार: ऋषि कूपर, प्रियांशु चटर्जी, कुलराज रंघावा, सौरभ शुक्ला, गुरूशा कपूर, सौफी चौघरी, कमल चटर्जी और शबनम
समीक्षा: निर्देशक रंजीत कपूर की फिल्म "चिंटूजी" बिना किसी प्रचार और सुर्खियों के आश्चर्यजनक परिणाम के साथ काफी अच्छी फिल्म है। पिछले कुछ सप्ताह से एक ही दिन में कम से कम आघा दर्जन फिल्में प्रदर्शित हो रही है। फिल्म की कहानी शहर से दूर बसे छोटे से गांव हडबेहडी की है। गांववालों को लगता है कि अगर उनके गांव में यदि किसी वीआईपी ने जन्म लिया होता, तो गांव का भी चौतरफा विकास हो जाता। एक दिन गांव की बूढी दाई मां गांववालों को बताती है कि राज कपूर के बेटे ऋषि कपूर ने बरसों पहले इसी गांव में जन्म लिया था। बस फिर क्या था।
गांववाले फौरन ऋषि कपूर का गांव में नागरिक अभिनंदन करने का फैसला लेते है। दूसरी ओर कभी ग्लैमर की दुनिया के बादशाह रहे ऋषि कपूर को अपने करियर के ढलान पर जब यह बुलावा मिलता है, तो वह अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं को पूरा करने में इस मौके का फायदा लेने की सोचता है। ऋषि एक पीआर एजेंसी से देविका (कुलजीत रंघावा)को हायर करके उसके साथ गांव पहुंचता है। ऋषि को लगता है कि गांव के भोलेभाले लोग उसे अपना नेता चुनेंगे। गांव में आने के बाद चिंटू जी (गांव वाले ऋषि कपूर को इसी नाम से पुकारते है) अपने नखरों से गांववालों का जीना हराम कर देते है। गांव के भोले लोग उनकी हर जायज-नाजायज डिमांड को पूरा करने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने से भी पीछे नही हटते। फिल्म में ऋषि कपूर की ऎक्टिंग का जवाब नही। अपनी खुद की भूमिका के साथ उन्होंने पूरा न्याय किया है।
फिल्म में परेशान फिल्मकार की भूमिका में अभिनेता सौरव शुक्ला पर्दे पर काफी जंचे है। अभिनेता प्रियांशु चटर्जी पूरी तरह से आत्मविश्वासी लगे। छोटे पर्दे के कार्यक्रम "करीना-करीना" से चर्चा में आई अभिनेत्री कुलजार रंघावा भी अपने किरदार के अनुरूप ही लगी है। निर्देशक की सफलता उनके किरदार की स्वाभाविक अभिनय के कारण है। फिल्म दिल को सुकून देने और चेहरे पर मुस्कान बिखेरने में कामयाब होगी।
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