कलाकार - अमिताभ बच्चन, रितेश देशमुख, परेश रावल,रजत कपूर, सुदीप, मोहनीश बहल, गुल पनाग, सुचित्रा कृष्णामूर्ति, राजपाल यादव
रामगोपाल वर्मा की इसलिए तारीफ करनी चाहिए कि वे हमेशा लीक से हटकर सोचते है और हमेशा कुढ ऎसा लाने की कोशिश करते है। जो हमे अंदर तक प्रभावित करें। इस बार रामू ने फिल्म रण में मीडिया पर दबदबा रखनेवाले उन दिग्गजों के खेल को पर्दे पर उतारा है जो वे अपने लाभ के लिए खेलते है। रामू का कैमरा न्यूज रूम में गया है, उसके पीछे गया है और राजनीतिज्ञ-उद्योगपति-मिडिया की तिकडी के कारनामों पर प्रकाश डालने में सफल हुआ है। इसके अलावा यह फिल्म यह भी बताती है कि समाचार चैनल लोगों का ध्यान खींचने के लिए समाचारों को किस हद तक सनसनीखेज बनाते है, ताकि उनके दर्शकों की संख्या में वृद्वि हो । फिल्म रण यह भी बताती है कि हर क्षेत्र में अच्छे और बुरे लोग होते है। एक पछली सारे तालाब को गंदा करती है कि तर्ज पर कुछ लोग अपनी लालच छोड नहीं पाते और अपनी सफलता के समाचार गढते रहते है। रण उन दर्शकों के लिए है, जिन्हें गंभीर सिनेमा पसंद है। यह बुद्धिजीवियों के लिए है, उन लोगों के लिए है जो सोच-विचार करते है।
विजय हर्षवर्धन मलिक(अमिताभ बच्चन)एक निजी समाचार चैनल इंडिया 24/7के संस्थापक है। उनका चैनल पत्रकारिता के मूल्यों और नीतियों के लिए पूरी तरह समर्पित है, और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है । उनका बेटा जय (सुदीप)अपने चैनल को एक व्यवसाय की तरह देखता है और मानता है कि अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए मुनाफा जरूरी है। वह अपने प्रतिद्वंद्वी मोहनीश बहल से नफरत करता है, क्योकि वह इस क्षेत्र में उनसे आगे है। कहानी उस समय एक नया मोड लेती है जब मोहन पाण्डेय (परेश रावल)विजय के दामाद नवीन (रजत कपूर) का इस्तेमाल अपने राजनीतिक लाभ के लिए करना चाहता है। पाण्डेय प्रधानमंत्री बनना चाहता है और इस चैनल को अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहता है।
नवीन काफी लालची है और हर हाल में सफलता हासलि करने की चाह रखता है, इसलिए वह अपने साले को भी पाण्डेय के खेल में शामिल कर लेता है। रण किसी गड्ढे में गिर गई होती अगर इसका लेखन इतना तीक्ष्ण और मारक न होता और इसके अभिनेताओं का चयन इतना सहज न होता। रामू की फिल्मे ऎसे अभिनेताओं से सजी होती है, जो अपने शानदार अभिनय से कहानी के किरदारों में जान डाल देते है। इस फिल्म में भी हर कलाकार ने लाजवाब अभिनय किया है। भले ही उसकी भूमिका कितनी भी रही हो। कुल मिलाकर रण बहुत मेहनत से बनाई गई फिल्म है, इस पर कोई दो राय नही है।
रामगोपाल वर्मा की इस फिल्म रण भले ही बडे शाहरों के मल्टीप्लेक्स में कम चले लेकिन छोटे शहरों के सिंगल थिएटर में ये फिल्म सफल हो सकती है। क्योंकि मीडिया के बारे में जितनी बाते उन्होने इस फिल्म में बताई है तोग उतनी बात पहले से जानते है और उसी कहानी को एक बार अमिताभ की जुबानी सुन लेने में किसी को एजराज नहीं हो सकता है।
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