सारी दुनिया को भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के महाशतक अर्थात् "शतकों के शतक" का इंतजार था। 12 मार्च 2011 को क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर ने 99वां शतक लगाया था। इस शतक के बाद दुनिया भर के दर्शकों को सचिन से महाशतक की उम्मीद बढ गई थी। इंतजार होने लगा कि कब यह छोटे कद का "क्रिकेट का बडा सिकन्दर" शतकों का शतक लगायेगा।
दिन बीते, महीने बीते और पूरा एक वर्ष बीत गया। 12 मार्च 2012 को मीडिया ने समाचारों के जरिए फिर सचिन के महाशतक को लेकर उनकी आलोचना करना शुरू किया। मीडिया ने कहा सचिन अब बुढा गए हैं। क्रिकेट उनके बस की नहीं रही है। उन्हें टीम से हटा देना चाहिए। किसने सचिन को "भगवान" का दर्जा दे दिया है। तमाम आलोचनाओं और कटु प्रहारों को एक "सिकन्दर" के भांति अपनी छाती पर झेलते हुए यह योद्धा जंग के मैदान में डटा रहा और आखिरकार क्रिकेट के "भगवान" का दर्जा पा चुके सचिन तेंदुलकर पूरे एक वर्ष 3 दिन बाद अपने महाशतक का सूखा खत्म करने में कामयाब रहे। एशिया कप में बांग्लादेश के खिलाफ सचिन ने अपने एकदिवसीय करियर का 49वां और अंतरराष्ट्रीय मैचों का 100वां शतक पूरा कर लिया। सचिन ने अपनी 138 गेंदों की इस पारी में 10 चौके और एक छक्का लगाया।
सचिन ने अपने क्रिकेट करियर में 51 टेस्ट शतक लगाए हैं। इससे पूर्व ऎसा लगने लगा था कि सचिन तेंदुलकर 100वें शतक का पीछा करते-करते अपना धैर्य खोने लगे हैं। एशिया कप में श्रीलंका के खिलाफ मुकाबले में कुछ ऎसा ही देखने को मिला। भारतीय पारी के छठे ओवर में सुरंगा लकमल ने सचिन को एक फुलटॉस गेंद डाली। सचिन उसे सही ढंग से खेल नहीं सके और शॉर्ट एक्सट्रा कवर पर खडे श्रीलंकाई कप्तान महेला जयवर्द्धने को कैच दे बैठे। जयवर्द्धने द्वारा कैच लिए जाने के बाद पूरी श्रीलंकाई टीम खुशी से झूम उठी। लेकिन सचिन टस से मस नहीं हुए। सचिन ने अंपायर के सामने गेंद के नो बॉल होने की शंका जाहिर की। अम्पायर भी सचिन द्वारा दी इस प्रतिक्रिया पर हैरान थे। लेकिन अनुभवी बल्लेबाज को संतुष्ट करने के लिए फील्ड अंपायरों ने टीवी रिप्ले का सहारा लिया। रिप्ले में पूरा माजरा साफ हो गया। न तो गेंद नो बॉल थी और न जयवर्द्धने ने कैच लपकने में कोई गलती की थी। अंतत: सचिन को महज 6 रन के निजी योग पर पवेलियन लौटना पडा।
यह पहला अवसर था जब सचिन ने स्वयं के आउट होने पर एतराज जताया था। इस घटना ने इस बात को मजबूती प्रदान की कि सचिन महाशतक के दबाव में क्रिकेट खेल रहे हैं। उनके दिमाग में हर वक्त दर्शकों का दबाव रहता है जो उनके मैदान पर उतरते ही "शतक" की उम्मीद लगा बैठते हैं। उनकी उम्मीद को पूरा करने के चक्कर में ही शायद सचिन गलतियों पर गलतियां करते गए।
वैसे देखा जाए तो आज उन्होंने महाशतक जरूर लगाया लेकिन यह शतक वैसा शतक नहीं था जैसा उनका पहला टेस्ट शतक या पहला वन डे शतक था। एक कमजोर टीम के सामने जिस तरह डरते हुए उन्होंने अपना यह शतक पूरा किया उसने उनके भविष्य के लिए सवालिया निशान खडा कर दिया है। क्या सचिन आगे भी इसी तरह से क्रिकेट खेलते रहेंगे या फिर वे अपने उन पुराने दिनों की चमक एक बार फिर से बिखेरने में कामयाब होंगे जिसने उन्हें "क्रिकेट का भगवान" का दर्जा दिलाया।
उन्होंने बांगलादेश के खिलाफ खेलते हुए अपने 50 रन पूरे करने के लिए 69 गेंदों का सामना किया और 100 रन पूरे करने के लिए 138 गेंदों का अर्थात् उत्तरार्द्ध के 50 रन पूरे करने के लिए उन्होंने फिर 69 गेंदों का सामना किया जबकि उनके साथ दूसरे छोर पर बल्लेबाजी करने वाले रैना ने अपने 50 रन मात्र 37 गेंदों में पूरे किए थे। यह अन्तर दर्शाता है कि अब सचिन में वो जोश नहीं रहा है जिसके लिए वे जाने जाते हैं। लेकिन "शतकों का शतक" पूरा होते ही उन्होंने अपने बल्ले का मुंह खोला और आउट होने से पहले शतक में जोडे 14 रनों के लिए उन्होंने मात्र 8 गेंदों का सहारा लिया।
उन्होंने इन 14 रनों के जरिए अपने ऊपर से दबाव को हटने का संकेत दिया और स्पष्ट किया कि अभी उनमें क्रिकेट खेलने के लिए बहुत दमखम है। वर्ष 2011 में सचिन ने कुल 11 एकदिवसीय खेले और इस दौरान उन्होंने विश्वकप में 27 फरवरी को इंग्लैंड के खिलाफ 120 रन और 12 मार्च को नागपुर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 111 रन बनाए थे। इसी टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में 30 मार्च को उन्होंने मोहाली में पाकिस्तान के खिलाफ 85 रन बनाकर अपने शतक से महज 15 रनों से चूक गए थे। इसके बाद ऎसे करीब चार से पांच मौके आए जब सचिन अपना महाशतक बनाने में विफल रहे।
इंग्लैंड में चौथे टेस्ट के दौरान सचिन 91 पर आउट होकर पवेलियन लौट गए थे। मुंबई में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलते हुए भी तेंदुलकर को अपना 100वां शतक लगाने का भरपूर मौका मिला लेकिन रवि रामपाल ने महज छह रनों से दूर 94 रनों पर सचिन का विकेट उखाड दिया। हाल ही ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर भी सचिन ने सिडनी टेस्ट की दूसरी पारी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 80 रनों की बेहतरीन पारी खेली थी लेकिन कप्तान माइकल क्लार्क ने उनका यह सफर रोक दिया। सचिन ने भारत के लिए 188 टेस्ट मैचों में 15470 रन बनाए हैं। इसमें 51 शतक और 65 अर्धशतक शामिल हैं जबकि 462 एकदिवसीय मैचों में सचिन के बल्ले से 49 शतक और 18360 रन निकले हैं। 18 दिसम्बर, 1989 में अपने करियर का पहला एकदिवसीय मैच खेलने वाले सचिन ने 462 मैचों की 451 पारियों में 41 बार नाबाद रहते हुए 44.64 के औसत से रन बनाए हैं। उनके नाम 95 अर्धशतक भी दर्ज हैं। सर्वकालिक महान बल्लेबाजों में शुमार सचिन अंतरराष्ट्रीय मैचों में शतकों का शतक लगाने वाले पहले बल्लेबाज हैं। उनके नाम सर्वाधिक टेस्ट तथा एकदिवसीय शतक के अलावा टेस्ट तथा एकदिवसीय मैचों में सबसे अधिक रन बनाने का रिकॉर्ड है।
सचिन तेंदुलकर भी कई अन्य क्रिकेटरों की तरह अंधविश्वासी हैं। सचिन ने अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर के दौरान कई बार हेयरस्टाइल और अपने लुक को बदला है लेकिन उनका मौजूदा हेयरस्टाइल जिसके तहत उन्होंने अपने घुंघराले बालों को स्ट्रेट करवाकर अपने पसंदीदा टेनिस स्टार जान मैकनरो की तरह हेयरस्टाइल अपनाया है, शायद उनके 100 वें महाशतक के लिये "लकी" साबित हुआ। बांग्लादेश के खिलाफ एकदिवसीय मैचों में लगाया गया उनका ये पहला शतक है। एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि सचिन तेंदुलकर ने अपने करियर में हर उस टीम के खिलाफ सैकडा जडा है जिसके खिलाफ उन्होंने दस या इससे अधिक मैच खेले लेकिन उन्होंने सर्वाधिक शतक दुनिया की सबसे मजबूत टीम आस्ट्रेलिया के खिलाफ लगाये हैं।
मास्टर ब्लास्टर ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ सर्वाधिक 20 शतक लगाये हैं। इनमें से 11 शतक उन्होंने टेस्ट मैच और नौ शतक एकदिवसीय मैचों में लगाये हैं।
इसके बाद श्रीलंका 17 , दक्षिण अफ्रीका 12 , इंग्लैंड और न्यूजीलैंड दोनों के खिलाफ नौ-नौ , जिम्बाब्वे आठ , वेस्टइंडीज और पाकिस्तान सात, बांग्लादेश पांच, कीनिया चार और नामीबिया के खिलाफ एक शतक ठोका है।
तेंदुलकर के 100 शतकों में से 42 शतक भारतीय सरजमीं पर बने हैं, 41 शतक विदेशी धरती पर और 17 शतक नॉन क्रिकेट प्लेइंग तीसरे यानी तटस्थ देशों में बने हैं।
वह भारतीय उपमहाद्वीप में अब तक 71 शतक जमा चुके हैं।
शतकों के लिहाज से 1998 का साल उनके लिये काफ़ी अच्छा रहा। उस साल तेंदुलकर ने 12 शतक जमाये। इसके अलावा उन्होंने 1996, 1999 और 2010 में आठ-आठ तथा 2001 में सात शतक लगाये थे। इस साल यह उनका चौथा शतक है।
-राजेश भगताणी
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