संगीत: मोंटी शर्मा
कलाकार: सनी देओल, अर्जुन रामपाल, सागरिका घाटगे, उदिता गोस्वामी
समीक्षा: आमतौर पर फिल्मों में रहस्य का ताना-बाना तो अच्छी तरह बुन लिया जाता है, लेकिन जब रहस्य पर से परदा उठता है, तो लेखक ऎसे तर्क और घटनाक्रम सामने रखता है, जो तर्कसंगत नही लगते और मामला टॉय-टॉय फिस्स हो जाता है। निर्देशक दीपक तिजोरी की फिल्म "फॉक्स" के साथ भी यही समस्या है। अर्जुन कपूर(अर्जुन रामपाल) एक वकील है, जो पैसों की खातिर उन लोगों को बचाता है, जो दोषी है। वकालत उसके लिए मात्र व्यवसाय है। आखिर उसका जमीर जगता है, और वह वकालत से ब्रेक लेकर मुंबई से गोआ चला जाता है। एक मुलाकात के दौरान एक बूढा आदमी अर्जुन को अपना उपन्यास पढने को देता है। अर्जुन को उपन्यास बहुत रोचक लगता है। अगले दिन वह उसे लौटाने जाता है, लेकिन उसे पता चलता है कि वह वृद्ध इस दुनिया में नही रहा। अर्जुन अपने नाम से उस उपन्यास को पब्लिशर सोफिया(उदिता गोस्वामी)की मदद से छपवाता है।
उपन्यास बेहद सफल रहता है, और अर्जुन की ख्याति और बढ जाती है। एक दिन पुलिस ऑफिसर यशवंत देशमुख (सनी देओल) अर्जुन से पूछता है कि क्या उपन्यास उसने लिखा हैक् अर्जुन के हां कहने पर उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है, क्योंकि उपन्यास में वर्णित घटनाक्रम पांच मर्डर केस से संबंघित है। उपन्यास में इन हत्याओं का इतनी बारीकियों से वर्णन किया गया कि अर्जुन को ही हत्यारा समझ लिया जाता है। कैसे अर्जुन अपने आपको बेगुनाह साबित करता है, ये फिल्म का सार है। फिल्म की शुरूआत मे अर्जुन के जमीर जागने और वकालत से ब्रेक लेने के घटनाक्रम को जरूरत से ज्यादा फुटेज दिया गया है। इंटरवल से कुछ देर पहली सनी देओल की एंट्री और अर्जुन रामपाल के गिरफ्तार होने के बाद उम्मीद जागती है, कि आगे कुछ दिलचस्प देखने को मिलेगा। लेकिन इसके बाद कहानी को ठीक तरह से दीपक तिजोरी विकसित नही कर सके। कहानी को पूरा करने के लिए उन्होंने तर्क-वितर्कों को परे रखकर फिल्म के नाम पर खूब छूट ले ली। सनी देओल का किरदार भी ठीक से नही लिखा गया है।
उन्हें अक्खड व्यक्ति दिखाने की कोशिश की गई है, लेकिन कई बार वे उदार निकले और अपने दुश्मन की उन्होंने मदद भी की। निर्देशक के रूप में दीपक तिजोरी ने फिल्म को आघुनिक लुक देने की कोशिश की है। इस वजह से अंग्रेजी के कई संवादों का इस्तेमाल किया गया है, और किरदारों की लाइफस्टाइल हाईफाई रखी गई है। अर्जुन रामपाल का अभिनय औसत है, और उनके द्वारा बोले गए कुछ संवाद अघूरे लगते है। सनी देओल ने नियंत्रित अभिनय किया है। सागरिका घाटगे के मुकाबले उदिता गोस्वामी बेहतर रही। कुल मिलाकर फॉक्स एक औसत फिल्म है।
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