Thursday, October 22, 2009

दादासाहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किए गए मन्ना डे

Manna Dey

जाने माने पाश्र्व गायक मन्ना डे को बुधवार को प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया। मन्ना डे इस समय 90 वर्ष के है और उन्होंने कई सफल गीत दिए है। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के लिए यहां आयोजित 55वें समारोह में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया।
मन्ना डे को यह सम्मान वष 2007 के लिए दिया गया। राष्ट्रपति ने मन्ना डे को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया तथा पुरस्कार राशि के रूप में दस लाख रूपए नकद और स्वर्ण कमल प्रदान किया।
भारतीय फिल्म संगीत में दिए गए उनके योगदान को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह सम्मान देने में देरी हुई है। वैसे भी मन्ना डे मान-सम्मान के मामले मे बदकिस्मत रहे है। उन्हें प्रतिभाशाली होने के बावजूद वो सम्मान नही मिला, जिसके वे हकदार है।
मन्ना डे का पूरा नाम प्रबोध चंद्र डे है और उनका जन्म 1 मई 1919 में हुआ था। मन्ना डे उनका पेट नाम था, पर यही नाम उनकी पहचान बन गया। मन्ना डे हिंदी और बंगाली फिल्मों के महान गायकों में से एक है। मन्ना डे ने कुल 3500 गानों को अपनी आवाज से सजाया है। उन्होंने कई गाने किशोर कुमार, मोहम्मद रफी और मुकेश के साथ भी गाए है। 90 वषीय मन्ना डे के नाम को पांच सदस्यीय एक समिति ने चुना है।
मन्ना डे का जन्म बंगाल में हुआ था और उन्होंने वहीं प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी। 1942 में उन्होंने मुंबई का रूख किया और कृष्णा चंद्र डे व सचिन देव बर्मन के साथ काम करना शुरू किया। यहीं से उनके करियर की शुरूआत कही जा सकती है। मन्ना डे की खासियत है कि उनके गाए गानों में हिंदुस्तानी क्लास्किल संगीत हमेशा उपस्थित रहता है। उन्होंने उस्ताद अमान अली खान और उस्ताद अब्दुल रहमान खान से संगीत की दीक्षा भी ली है।
मन्ना डे ने 1940 में फिल्म "राम राज्य" में अभिनय भी किया और गाना भी गाया था। यह गांधीजी द्वारा देखी गई एकमात्र हिंदी फिल्म थी। इसके बाद फिल्म "तमन्ना" से उन्होंने पाश्र्व गायन में पूरी तरह से कदम रख दिया। इस गाने में कृष्णय चंद्र डे का संगीत था और यह गाना उस जमाने के हिट गानों में शुमार हो गया था। उन्होंने किशोर कुमार के साथ फिल्म "शोले" में "यह दोस्ती हम नही छोडें़गे.." गाना भी गाया, जो आज भी दोस्ती के लिए गाया जाता है। फिल्म "प़डोसन" में महमूद के गाने "एक चतुर नार करके सिंगार.." को भी मन्ना डे ने अपनी आवाज से गुलजार किया।
मन्ना डे ने कुछ धार्मिक फिल्मों में गाने क्या गाएं उन पर धार्मिक गीतों के गायक का ठप्पा लगा दिया गया। "प्रभु का घर(1945), श्रवण कुमार (1946), जय हनुमान (1948), राम विवाह(1949)" जैसी कई फिल्मों में उन्होंने गीत गाएं। इसके अलावा बी-सी ग्रेड फिल्मों में भी वे अपनी आवाज देते रहें। भजन के अलावा कव्वाली और कठिन गीतों के लिए मन्ना डे को याद किया जाता था। इसके अलावा मन्ना डे से उन गीतों को गंवाया जाता था, जिन्हें कोई गायक गाने को तैयार नही होता था। धार्मिक फिल्मों के गायक की इमेज तो़डने में मन्ना डे को लगभग सात वर्ष लगें। 50 के दशक तक मन्ना डे एक मंझे हुए पाश्र्व गायक के तौर पर स्थापित हो गए और उन्होंने "आवारा, दो बीघा जमीन, हमदर्द, परिणीता, चित्रागंदा, बूट पॉलिश और श्री 420" जैसी फिल्मों के लिए पाश्र्व गायन किया।
आमतौर पर राजकपूर की फिल्मों में मुकेश अपनी आवाज दिया करते थे, लेकिन कुछ गीतों के लिए राजकपूर ने मन्ना डे की आवाज पर भरोसा किया। "श्री 420" का "मुड-मुड के न देख.. मुड-मुड के.. , मेरा नाम जोकर का ए भाई जरा देख के चलों" और "बॉबी" फिल्म का "ना मांगू सोना चांदी.." आदि ऎसे ही कुछ गीत है। मन्ना डे की आवाज हर दौर में पसंद की गई। उन्होंने "शोले, लावारिस, सत्यम शिवम सुंदरम, चोरों की बारात, क्रांति, कर्ज, सौदागर, हिंदुस्तान की कसम, बुडढ़ा मर गया" जैसी तमाम फिल्मों के गीतों को स्वर दिया।
उन्होंने देश के महान शास्त्रीय गायकों में शुमार भीमसेन जोशी के साथ "केतकी गुलाब जूही, चंपक बन फूले" गाकर अपनी सुर साधना का परिचय दिया। उन्हें रवींद्र संगीत का भी चितेरा माना जाता था। दादा साहब फालके पुरस्कार से पहले मन्ना डे को 1969 में फिल्म "मेरे हुजूर" के लिए और 1971 में बांग्ला फिल्म "निशी पद्मा" के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया।
मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें 1985 में "लता मंगेशकर पुरस्कार" दिया। इसके अलावा भी उन्हें पाश्र्वगायन के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। सरल स्वभाव वाले, सादगी पसंद मन्ना डे ने इस बात की कभी शिकायत नही की कि उन्हें पर्याप्त अवसर नही मिले या उनकी प्रतिभा का उचित सम्मान नही हुआ। उन्हें किसी बात का मलाल नही है।
भारतीय सिनेमा में अमूल्य योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा यह पुरस्कार हर वर्ष दिया जाता है। इस पुरस्कार की स्थापना 1969 में की गई थी। गौरतलब है कि दादा साहब फाल्के को भारतीय फिल्म उद्योग का पितृ पुरूष कहा जाता है और उन्ही के सम्मान में इस पुरस्कार की स्थापना की गई है। देविका रानी इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली पहली अदाकारा थी।

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