धनतेरस : दीपावली से दो दिन पूर्व "कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी" धनतेरस कहलाती है। धन की देवी लक्ष्मी का इस तिथि से अटूट संबंध है। इस दिन चाँदी के बर्तन, सिक्के व आभूषणादि खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है।
इस दिन सायंकाल में यमराज की प्रसन्नता के लिए घर के मुख्य दरवाजे पर दीपक जलाया जाता है। यमराज मृत्यु के देवता हैं और इस दिन दीपक जलाने से वे प्रसन्न होते हैं। इस पर्व के महत्व को बताते हुए यमराज ने स्वयं कहा है -
"कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे। यमदीपं बहिर्दद्यादमपमृत्युर्विनश्यति।।"
अर्थात् कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को जो सायंकाल में दीपदान करेगा उसकी अकाल मृत्यु नहीं होगी।
धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि का भी अवतार हुआ था। धन्वन्तरि देव सृष्टि के सर्वप्रथम चिकित्सक होने के नाते चिकित्सक वर्ग के प्रमुख आराध्य देव हैं। चिकित्सक वर्ग इस दिन धन्वन्तरि देव की पूजा-अर्चना करते हैं और अपनी सफलता के लिए आशीर्वाद की याचना करते हैं तथा प्रसाद लेकर जनता के स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करते हैं। भगवान धन्वन्तरि को औषध अवतार भी माना जाता है क्योंकि ये औषधियों को लेकर ही प्रकट हुए थे। प्रकृति में व्याप्त समस्त औषधियों का इन्हें संपूर्ण ज्ञान था जिसे समय-समय पर इन्होंने सत्पात्रों को प्रदान किया।
नरक चतुर्दशी: इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। लक्ष्मी जी की ब़डी बहिन अलक्ष्मी या दरिद्रा इस दिन प्रकट हुईं थीं। पुराणों के अनुसार कार्तिक मास में शरीर पर तेल मालिश नहीं की जाती परंतु इस दिन तेल की मालिश करके स्नान करना शुभ बताया है क्योंकि इससे अलक्ष्मी का प्रभाव नहीं प़डता और दरिद्रता दूर रहती है।
अपामार्ग पौधे की पत्तों से युक्त डाली को अपने सिर पर घुमाकर उसे फेंक देने तथा उसके बाद स्नान करने से बुद्धि भ्रम की संभावना नहीं रहती है।
इस दिन यम-तर्पण करने से भी बहुत शुभफल मिलते हैं परंतु तर्पण केवल घर के मुखिया को ही करना चाहिए। तर्पण का अर्थ है-शुद्ध जल में कच्चो तिल डालकर निम्नलिखित देवताओं का नाम लेकर नमस्कार करते हुए दोनों हाथों की अंजलि में जल भरकर दूसरे पात्र में डालना ही तर्पण कहलाता है।
यम तर्पण के मंत्र : ऊँ यमराजाय नम:, ऊँ धर्मराजाय नम:, ऊँ मृत्युवेनम:, ऊँ अन्तकाय नम:, ऊँ वैवस्वताय नम:, ऊँ कालाय नम:, ऊँ सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊँ औदुम्बराय नम:, ऊँ दध्नाय नम:, ऊँ नीलाय नम:, ऊँ परमेष्ठिने नम:, ऊँ वृकोदराय नम:, ऊँ चित्राय नम:, ऊँ चित्रगुप्ताय नम:।
इन नामों से तर्पण करने पर अकाल मृत्यु का निवारण होता है। दरिद्रता दूर होती है तथा पितृदोष का निवारण एवं वंश की वृद्धि व रक्षा होती है।
भगवान कृष्ण ने इसी दिन नरकासुर नामक राक्षस का वध किया इसलिए इसे "नरक चतुर्दशी" भी कहते हैं।
हनुमत् पूजन: दीपावली से एक दिन पूर्व हनुमानजी के पूजन करने की भी परंपराएं रही हैं। देश के कुछ भागों में इस दिन हनुमान जी का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है। इस चतुर्दशी को हनुमान जी सिंदूर का चोला चढ़ाकर, चूरमे का या आटे से बने किसी मीठे खाद्य पदार्थ का भोग लगाने से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं और अज्ञात व अप्रत्यक्ष बाधाओं का निवारण कर देते हैं।
दीपावली : महालक्ष्मी का प्राकट्य इसी दिन हुआ। सायंकाल में महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है, दीप जलाए जाते हैं और लक्ष्मीजी से घर में स्थिर रहने की प्रार्थना की जाती है।
लक्ष्मी पूजन में प्रयुक्त प्रसिद्ध मंत्र :
गणेश जी का मंत्र : ऊँ श्री गणेशाय नम:।
महाकाली (दवात के रूप में)
कालिके त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे। उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहार प्रसिद्धये।।
लेखनी (पैन)
लेखनी निर्मिता पूर्व ब्राहम्णा परमेष्ठिना। लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम्।।
महासरस्वती पूजन (डायरी या बहीखातों पर)
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभवस्त्रावृता
या वीणा वरदण्ड मण्डित करा या श्वेत पद्मासना।
या ब्रम्हा च्युत शंकर प्रभृतिभि: देवै:सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा।।
कुबेर पूजन (तिजोरी में)
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवत् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादि सम्पद:।।
तराजू पूजन
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिते।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।।
महालक्ष्मी पूजन
ऊँ सरसिजनिलये सरोज हस्ते, धवल तरांशुक गन्धमाल्य शोभे।
भगवति हरि वल्लभे मनोज्ञे, त्रिभुवन भूति करि प्रसीद मह्यम्।।
इस प्रकार इन मंत्रों से दीपावली पूजन कर लिया जाना चाहिए।
अन्नकूट महोत्सव : दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। अन्नकूट में तरह-तरह के तेज मिर्च-मसालों से युक्त एवं मिष्ठान्न युक्त गरिष्ठ भोज्य पदार्थो का भगवान को भोग लगाया जाता है।
यम द्वितीया (भैया दूज) : दीपावली के बाद तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमद्वितीया पर्व मनाया जाता है। इसे भैयादूज भी कहते हैं। इस दिन बहिनें अपने भाइयों के मस्तक पर तिलक लगाकर उनके यश वृद्धि की कामना करती हैं वहीं भाई अपनी बहिनों को रक्षा की पूरी जिम्मेदारी का अहसास कराते हैं एवं उपहार स्वरूप, धन या वस्त्रादि देते हैं।
इस दिन बहिन के घर ही भोजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। किसी के बहिन नहीं हो तो वह अपनी बुआ या मौसी के यहाँ भी भोजन कर सकता है। पुराणों में कथा आती है कि यमराज और यमुना दोनों सगे भाई-बहिन हैं परंतु वर्ष में केवल एक बार ही एक-दूसरे से मिलते हैं।
यमराज भी वर्ष में एक बार, फुर्सत निकालकर प्रतिवर्ष इस दिन अपनी बहिन से मिलने आते हैं। यमराज भी यही कहते हैं कि इस दिन जो कोई अपनी बहिन को प्रसन्न करने के लिए उसके घर जाएगा, उसे उपहार देगा तथा उसी के हाथ से बना भोजन करेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
प्रत्येक बहिन दूज तिथि का पूजन करके यमराज से अपने भाइयों की दीर्घायु की प्रार्थना करती है और उन्हें तिलक लगाती है।
इस प्रकार भक्ति व आनंद के रस से ओत-प्रोत पाँच दिन के ये पाँच त्यौहार पूर्ण हो जाते हैं।
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