इनका प्राकट्य समुन्द्र मंथन के अवसर पर हुआ था (महा0 आदि 18.34) विष्णु भगवान में इनकी परा अनुरक्ति थी। अत: इन्होनें पति के रूप में उन्हें ही वरण किया। वरण के अवसर पर जो माला इन्होनें उन्हें पहनायी थी वह पद्मों की ही थी। लक्ष्मी के अनेक रूप है। उनमें पद्मा विष्णु की अनुरागिनी रूपा है। गोपियों ने विष्णु के प्रति पद्मा के प्रेम की इस एकतानता की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। पद्मा के अतिरक्त अन्य रूपों में ये ऎश्वर्य प्रदान करती हें, सम्पति का अम्बार लगा देती है और सर्वत्र शोभा का आधार करती है।
माता लक्ष्मी ने अपने बहुत से अवतारों में अपना नाम पद्मा या एतदर्धक शब्द ही रखा है। आकाशराज की अयोनिजा कन्या के रूप में जब ये अवतीर्ण हुई तब इनका नाम पद्मावती, पद्मिनी और पद्मालया रखा गया (स्कन्द पु0 वै0 स्व0 भूमिवाराह खण्ड) भगवान जब कल्किका अवतार ग्रहण करते है, तब लक्ष्मी का नाम पkा ही होता है। कल्किपुराण में भी इनकी पद्मप्रियता को द्योतित करने के लिये पद्मघटित बहुत से पद दिये गये हैं।
पद्मपत्रेक्षणायैं च पद्मास्यायै नमो नम:।
पद्मासनायै पद्मिन्यै वैष्णव्यै च नमो नम:||
माता पद्मा के आवाहन में जो श्लोक पढ़ा जाता है, उससे भी पद्मा नाम की अन्वर्थता प्रकट होती है। उसमें बताया गया है कि पद्मा का सुख कमल की भांति है। वे कमल की मालाओं पर बैठती है और कमलों में ही रहती है-
पद्मिनी पद्मवदना पद्ममालोपरिस्थिताम्।
जगत्प्रियां पद्मवासां पद्मामावाहयाम्यहम् ||
आवाहन का एक अन्य मंत्र इस प्रकार भी मिलता हे-
सुवणाभां पद्महस्तां विष्णोर्वक्ष: स्थलस्थिताम्।
त्रैलोक्यपूजितां देवी पद्मामावाहयाम्यहम् ||
इससे ध्वनित होता है कि पद्मा रूप से ये निरन्तर श्री विष्णु के वक्ष-स्थल पर ही निवास किया करती है। ऎश्वर्य लक्ष्मी या धन लक्ष्मी की भांति कहीं अन्यत्रा नहीं जाती है।
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