Friday, December 4, 2009

पा : हंसी और आंसू एक साथ आते है

Paa निर्माता : सुनील मनचंदा, एबी कॉर्प
निर्देशक : आर बाल्की
गीत : स्वानंद किरकिरे
संगीत : इलैयाराजा
कलाकार : अभिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, विद्या बालन, परेश रावल, अरूंधती नाग

फिल्म "पा" के प्रति लोगों के मन में कुछ धारणाएं है। ये रोने-धोने वाली फिल्म होगी। बीमारी के ऊपर वृत्तचित्रनुमा फिल्म होगी या लाचार बीमार के प्रति हमदर्दी जताने वाली फिल्म होगी, लेकिन "पा" में ऎसा कुछ नहीं है। बेशक, पा का मुख्य किरदार ऑरो (अभिताभ बच्चन) प्रोजेरिया नामक बीमारी से पीडित है, जिसमें व्यक्ति अपनी उम्र से कही ज्यादा का दिखाई देता है, लेकिन उसकी कहानी को हंसते-हंसते पेश किया गया है। 13 वर्षीय ऑरो की हालत 65 वर्षीय जैसी रहती है, लेकिन निर्देशक और लेखक आर बाल्की ने फिल्म में उसके प्रति सभी का व्यवहार एक आम इंसान जैसा दिखाया है।
स्कूल में ऑरो के साथ पढने वाले उसके दोस्त उसकी हालत का कभी मजाक नहीं बनाते। न ही ऑरो को लाचार दिखाकर उसके प्रति हमदर्दी जताने की कोशिश की गई है। इसके विपरीत ऑरो बेहद स्मार्ट बच्चा है। नेट पर चैटिंग करता है। गणित के सवाल चुटकियों मे हल करता है। जैकी चेन की फिल्म देखता है और प्ले स्टेशन पर गेम खेलता है। ऑरो के किरदार को जिस तरह से हल्के-फुल्के अंदाज में पेश किया गया है वही इस फिल्म को खास बनाता है। 13 वर्षीय ऑरो अपनी मम्मी और नानी के साथ रहता है। अपने पिता के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है। स्कूल के पुरस्कार समारोह में ऑरो की मुलाकात युवा नेता अमोल आर्ते (अभिषेक बच्चन) से होती है और दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगते है। बाद में ऑरो को पता चलता है कि अमोल ही उसके पा है।
शादी से पहले ही उसकी मां प्रेगनेट हो गई थी और ऑरो के पिता नहीं चाहते थे कि वह इस दुनिया में जन्म ले, जिसमें उसके माता-पिता में अनबन हो गई। ऑरो का सपना है कि उसके माता-पिता फिर एक हो जाए और वह अपने मकसद में कामयाब होता है। निर्देशक बाल्की ने छोटे-छोटे दूश्यों के जरिये हास्य, व्यंग्य और इमोशन पैदा किया है। फिल्म में भावनात्मक दृश्यों को काफी गुंजाइश थी, लेकिन बाल्की ने इसके लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए और सीमा में रहकर बखूबी काम किया। कुछ दृश्यों में हंसी और आंसू एक साथ आते है।
वैसे तो फिल्म का नाम "पा" है, लेकिन ऑरो और उसकी मम्मी (विद्या बालन) के रिश्ते को भी खूबसूरती के साथ पेश किया गया है। साथ ही ऑरो और उसकी नानी (अरूंधती नाग) की नोकझोक तथा ऑरो और उसके दोस्त विष्णु (प्रतीक) की बातचीत चेहरे पर मुस्कान लाती है। अभिषेक-अभिताभ के बीच कई दृश्य मजेदार है। मेट्रो ट्रेन में ऑरो युवा नेता अभिषेक का मजाक बनाकर कहता है कि टॉयलेट में तो ये बिना गार्ड के जाते है और पॉटी सीट में से कोई बम विस्फोट कर उन्हें मार सकता है। ऑरो को अमोल राष्ट्रपति भवन धुमाने ले जाता है और उसे लेने के लिए वह एम्बेसेडर कार भेजता है तब ऑरो उसे कंजूस कहकर अपनी होडा सिटी मे जाना पसंद करता है। एक दृश्य मे परेश रावल अपने 34 वर्षीय बेटे अभिषेक से पूछते है कि वो गे तो नहीं है, क्योकि शादी की बाद अभिषेक हमेशा टाल जाते है।
अभिषेक बच्चन के जरिए राजनीति पर अपनी बात कहने में बाल्की थोडा भटक गए। उनका उद्देश्य अच्छा है कि राजनीति गंदा शब्द नहीं है, लेकिन अभिषेक और झुग्गी-झोपडी वाले मामले को वे ठीक से पेश नहीं कर पाए। इसी तरह विद्या और अभिषेक की प्रेम कहानी भी थोडी जल्दी सी निपटा दी गई। अभिताभ बच्चन का अभिनय एक बहुत बडा कारण है इस फिल्म को देखने के लिए। ऑरो के किरदार को उन्होंने स्क्रीन पर जीवत कर दिया है। अभिनय, बॉडी लैग्वेज और आवाज में कही भी अभिताभ बच्चन नजर नहीं आते। नि:संदेह अभिताभ उत्कृष अभिनय के लिए ढेर सारे पुरस्कार जीतेगे। अभिषेक बच्चन ने युवा नेता के हाव-भाव अच्छी तरह से पेश किया है। एक अभिनेता के रूप में उनमें आत्मविश्वास बढा है। विद्या बालन का अभिनय भी प्रशंसनीय है। सही ड्रैसेस के चुनाव के कारण वे खूबसूरत भी लगी। ऑरो की नानी के रूप में अरूंधती नाम का अभिनय बेहतरीन है। क्रिस्टिन टिंसले और डोमिनी टिल का फिल्म में अहम योगदान है। इन्होंने अभिताभ का बेहतरीन मेकअप किया है। इलेयाराजा का संगीत फिल्म में मूड के अनुरूप है। मुडी-मुडी गीत लोकप्रिय हो चुका है। पीसी श्रीराम की फोटोग्राफी उल्लेखीन है। ऑरो के लिए यह फिल्म देखी जा सकती है।

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